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________________ -५. ५९] भावप्रामृतम् ३८५ रोषलक्षणभावसंवरनिमित्तं। (मादा पच्चक्माणे ) आगामिदोषनिराकरणलक्षणं प्रत्याख्यानं प्रत्याख्याननिमित्तं ममात्मैव वर्तते । ( आदा मे संवरो जोगे ) आत्मा मे मम संवरे संवरनिमित्तं कर्मासवनिरोधलक्षणसंवरकायें ममात्मैव वर्तते । योगस्य ध्यानस्य कार्य ममात्मैव वर्तते इति भावः । एगो मे सस्सदो अप्पा णाणसणलक्षणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥ ५९॥ एको मे शास्वत आत्मा ज्ञानदर्शनलक्षणः। शेषा में बाह्या भावाः सर्वे संयोगलक्षणाः ॥ ५९ ।। ( एगो मे सस्सदो अप्पा) एको मे शाश्वत आत्मा अन्यत्सर्व विनश्वरमित्यर्थः । स आत्मा कथंभूतः ( णाणदंसणलक्खणो) निश्चयेन केवलज्ञानकेवलदर्शनलक्षणः, व्यवहारेणाष्टविधज्ञानचतुविधदर्शनचिन्हः, मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि सम्यग्ज्ञानं पंचविधं कुमतिकुश्रुतविभंगलक्षणं मिथ्याज्ञानं त्रिविधं, इत्यष्ट कारण नहीं हैं । आस्रव का निरोध होजाना संवर है। इस संवर में मेरा आत्मा ही विद्यमान है अथवा कर्मानवनिरोध लक्षण संवर रूप कार्य में मेरा आत्मा ही कारण है, अन्य पदार्थ नहीं। योग ध्यान को कहते हैं। योग में मेरा आत्मा ही विद्यमान है अथवा योग-ध्यान रूप कार्य में मेरा आत्मा ही कारण है। [ यहाँ पर टोकाकार ने उपादान कारण को अपेक्षा आत्मा को ज्ञान, दर्शन ही चारित्र, प्रत्याख्यान, संवर और योग का कारण कहा है क्योंकि आत्मा ही ज्ञानादि रूप परिणमन करता है। बाह्य कारणों का सर्वथा निषेध नहीं समझना चाहिये क्योंकि व्यवहार नयसे उनकी भी उपयोगिता होती है ] ॥५६॥ माथार्य अविनाशी और ज्ञान दर्शन रूप लक्षण से युक्त एक आत्मा ही मेरा है कर्मोके संयोग से होने वाले अन्य सभी भाव मुझ से बाह्य हैं मेरे नहीं हैं ॥ ५९॥ विशेषार्य-निश्चयनय से केवल ज्ञान और केवल दर्शन लक्षण वाला तथा व्यवहारनय से आठ प्रकार के ज्ञान तथा चार प्रकार के दर्शन रूप लक्षण से युक्त एक अविनश्वर आत्मा ही मेरा है, कर्मोदय से मिले हुए पुत्र स्त्री तथा मित्र आदि पदार्थ मेरे नहीं हैं, स्पष्ट ही मुझ से बाह्य भाव हैं। मति,श्रत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ये पांच सम्यग्ज्ञान तथा कुमति, . २५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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