________________
-५.५१]
भावशमृतम् व्यन्तरो जातः, तत्र समुत्पन्नसम्यक्त्वसम्पदिति बन्धुताप्रीतिरस्य । अथ श्रेणिकः प्राह-स्वामिन्नयं विद्युन्माली देवः कस्मादागतः, किं पुण्यं पूर्वभवे कृतवान्, अस्य प्रभा आयुरन्तेऽप्यनाहतेति । तदनुग्रहबुद्धधैव भगवान् गौतमः प्राह-अत्र जम्बूद्वीपे पूर्व विदेहे पुष्कलावतीविषये वीतशोकपत्तने महापद्मो राजा तन्महादेवी वनमाला । तयोः सुतः शिवकुमारः नवयौवनसम्पन्नः सर्वयोभिवनं विहृत्य पुनरागज्छन् गन्धपुष्पादिमंगलद्रव्योत्तमपूजया सह जनानागच्छतो दृष्ट्वा समुत्पन्नविस्मयो बुद्धिसागरमंत्रिणः पुत्रं किमेतदिति पप्रच्छ । स प्राह-कुमार! शृणु-सागरदत्तनामा मुनीन्द्रः श्रुतकेवली दीप्ततपोमण्डितो मासोपवासपारणाय पुरं प्रविष्ट । कामसमुद्रो नाम श्रेष्ठी विधिपूर्वकं भक्त्या दानं दत्वा पंचाश्चयं प्राप तेनोत्पन्न
रानी का नाम वनमाला था। उन दोनों के शिवकुमार नामका पुत्र था। एकदिन नवयोवन से सम्पन्न शिवकुमार अपने मित्रों के साथ वन विहार के लिये गया था। जब वहां से वापिस आ रहा था, तब गन्ध पुष्प आदि मङ्गल द्रव्य रूपो उत्तम पूजा की सामग्री के साथ लोगोंको आते देख उसे आश्चर्य उत्पन्न हुआ। उसने अपने बुद्धि सागर मन्त्री के पुत्र से पूछा कि यह क्या है ? मन्त्री ने कहा-कुमार ! सुनो, सागरदत्त नामके मुनिराज जो कि श्रुत केवली तथा दीप्त तपसे सुशोभित हैं एक मांसके उपवास के बाद पारणा के लिये नगर में प्रविष्ट हुए थे। कामसमुद्र नामक सेठने विधिपूर्वक भक्तिसे दान देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये हैं। इससे जिन्हें कौतुक उत्पन्न हुआ है ऐसे नगरवासी लोग मनोहर नामक उद्यान में निवास करने वाले उक्त मुनिराज की पूजा कर वन्दना करने के लिये परम भक्ति से जा रहे हैं। शिवकुमारने कहा कि इन मुनिराज ने सागरदत्तनामक, श्रुत केवली अवस्था तथा अनेक ऋद्धियों
को किस कारण प्राप्त किया ? मन्त्रि पुत्र ने भी जैसा सुन रक्खा था • वैसा कहना प्रारम्भ किया
पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नामकी नगरी है । उसके राजा का नाम चक्रवर्ती वज्रदत्त था उसकी स्त्री का नाम यशोधरा था जब वह गर्भिणी हुई तो उसे दोहला उत्पन्न हुआ। दोहला की पूर्ति के लिये वह जहाँ सीता नदी समुद्र में मिलती है वहाँ बड़े वैभव के साथ गई और
१. बुद्धिसागर पुत्र क० । २. प्राप्य म०।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org