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भावप्राभृतम्
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निवासं कर्तुं मना गोपालकुमारेभ्यः श्रुत्वा कृष्णं विनाऽस्य सरसो जलमानेतुं परैर्न शक्यमिति तमाहूय यथास्थानं स्कन्धावारं निवेशयामास । कृष्ण उवाच-राजन् ! त्वया कुत्र गम्यते इति । स्वर्भानुर्मथुरागमनप्रयोजनं तस्योक्तवान् । कृष्ण उवाचराजन् ! एतत्कर्म किमस्मद्विधैरपि कर्तुं भवेत् तत्श्रुत्वा स्वर्भानुश्चिन्तयामास असो शिशुः पुण्याधिकः केवलो न वर्तते इति । तस्य कर्मणः शक्तिश्चेदागच्छेति निजपुत्रमित्र तं गृहीत्वा सुभान्वपरनामा स्वर्भानुर्मथुरां जगाम । यथाहं कंसं ददर्श तत्कर्मकरणे बहून् भन्नमानान् दृष्ट्वा कृष्णः स्वर्भानुसुतं भानुं समीपगं कृत्वा कमंत्रय समकालं चकार । ततः सुभानुना दिष्टचादिष्टः कृष्णो गोष्ठं जगाम । कैश्चित्पुरुषः कंसो भणितः " तत्कम भानुना कृतं " । कैश्चित्तद्रक्षकैरुक्तं "न भानुना तत्कर्म कृतं अन्येन " मल्लेन कुमारेणेति" । तत्श्रुत्वा कंसः प्राह - सोऽन्याऽन्वष्यानीयतां तस्मै कन्या प्रदीयते इति । स कस्य, कि कुल, कस्मिन्निति । तावन्नन्दगोपेन सम्यग्विज्ञातं अनेन मत्पुत्रेण तत्कर्म. सम्यक्कृतमिति भीत्वा गोमण्डलं नीरा पलायांबभूवे शिलास्तंभमुद्धतुं तत्र सर्वे जनाः प्राप्तास्ते नाशक्नुवन् । कृष्णेन केवलेनैव समुद्धृतः । तत्साहतात् सर्वे जना विस्मित्य जहषुः । परार्थ्यांशुकाभरणादिदानेन पूजयामासुः । नन्दगोपस्तु ममास्य पुत्रस्वप्रभावेण कुतोऽपि भयं
राजाओं को देख कृष्ण ने स्वर्भानु के पुत्र भानुको अपने पास ही खड़ा कर उक्त तीनों कार्य एक साथ सम्पन्न कर दिये । तदनन्तर सुभानु का आदेश पा कर कृष्ण उसी समय गोष्ठ - गोकुल चले गये ।
इधर कितने ही पुरुषोंने कंस से कहा कि यह कार्य भानु ने किया है और उसके कितने ही रक्षकों ने कहा कि भानु ने वह काम नहीं किया है किन्तु किसी अन्य मल्ल कुमार ने किया है। यह सुनकर कंसने कहा कि उस दूसरे कुमार को खोजकर लाया जाय, उसके लिये यह कन्या दी जाती है। वह किसका लड़का था, उसका क्या कुल है और कहाँ रहता है ? इसका पता लगाया जाय । जब नन्दगोप को अच्छी तरह मालूम हो गया कि वह कार्य मेरे इस पुत्र ने ही किया है तो भय से वह अपने गोमण्डल को लेकर भाग गया। गोकुल में एक पत्थर का बड़ा भारी
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खम्भा लगा था उसे उखाड़नेके लिये लोग पहुँचे परन्तु समर्थ न हो सके. परन्तु कृष्णने उसे अकेले हो उखाड़ दिया । कृष्णके इस साहससे सब लोग विस्मय करते हुए हर्षित हो उठे। उन्होंने श्रेष्ठ वस्त्र आभूषण
१. मल्लेन, य प्रतो नास्ति ।
२. पुत्रप्रभावेन म० ।
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