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षट्प्रामृते
[५.४१रासभी भूत्वा तं दष्टुमागता। तां रासभी धरणे धृत्वा तयैव तं वृक्षमताडयत् (६) । अन्यस्मिन् दिनेऽन्या देवता तुरंगमो भूत्वा तं मारयितुमागता । तस्य वदनं मुष्टिना जघान ( ७) । एवं सप्तव देवताः कंसमागत्योचुः-वयं तव शत्रुमाहन्तुं न समर्थाः स्म इति । विद्युत इव विलीनाः। देवतानामपि शक्तयः पुण्यवज्जने न समर्थाः शक्रवरिशस्त्राणीव । अन्यस्मिन् दिनेऽरिष्टनामा देवस्तत्पराक्रम दृष्टु तत्पुरमागतः कृष्णवृषाकारः, तस्य ग्रीवाभंजने स उद्यमं चकार । तन्माता यशोदापि तं तर्जयति स्म-पुत्र ! एवमादित एवाफलचेष्टितात् क्लेशान्तरसम्पादकाद्विरमेति पुनः पुनर्निवारितोऽपि मदोत्कटस्तच्चेष्टितं चकार । महौजसोपदाने निवारयितुं न शक्यन्ते । तत्पौरुषं ख्यातं लोकवचनादाकर्ण्य देवकीवसुदेवौ तद्दर्शन
लिये आई। विष्णु ने उस गधीका पैर पकड़ कर उसीसे उस वृक्षको ताड़ित किया ( ६ )। किसी दूसरे दिन एक देवी घोड़ा बनकर उन्हें मारने के लिये आई तो उन्होंने घूसे के द्वारा उसका मुख तोड़ दिया। इस तरह सातों ही देवियाँ कंसके पास आकर कहने लगी कि हम लोग तुम्हारे शत्रको मारने के लिये समर्थ नहीं हैं। इस प्रकार कह कर वे बिजली की तरह विलीन हो गई। सो ठीक ही है क्योंकि जिस प्रकार इन्द्रके वज्र पर शत्रुओं के शस्त्र असमर्थ रहते हैं उसी प्रकार पुण्यवान् मनुष्य पर देवताओं की शक्तियाँ भी असमर्थ रहती हैं।।
किसो एक दिन अरिष्ट नामका देव उसका पराक्रम देखने के लिये उस नगर में आया और एक काले बेल का रूप रखकर घूमने लगा। बालक श्रीकृष्ण उसकी गर्दन तोड़ने का उद्यम करने लगा । माता यशोदा ने उसे मना भी किया कि बेटा! इस तरह प्रारम्भ से ही अन्य क्लेशों को उत्पन्न करने वाली निष्फल चेष्टा से दूर रहो । बार बार मना करने पर भी गवसे भरा कृष्ण अपनी उस चेष्टा को करता ही रहा सो ठीक ही है क्योंकि तेजस्वी मनुष्य पराक्रम के कार्य में रोके नहीं जा सकते । इस प्रकार श्रीकृष्ण के पराक्रम की चर्चा सर्वत्र फैल गई। लोगोंके कहने से जब देवकी और वसुदेव ने यह कथा सुनी तो वे भी उसे देखने के लिये उत्कण्ठित हो, गोमुखी नामक उपवास के बहाने वे बलभद्र तथा अन्य परिवार के साथ बड़े ठाट बाट से गोदावन ( गोकुल ) गये उसी समय कृष्ण गवसे भरे वृषभेन्द्र की गर्दन तोड़ कर बहुत भारी पराक्रम का अवलम्बन कर बैठे थे। उन्हें उस प्रकार का देख देवकी तथा वसुदेवने चन्दन और माला आदि से सन्मानित कर विभूषित किया । तदनन्तर प्रदक्षिणा करती हुई देवकी के स्वर्ण कलशके सदृश स्तनों से दूध मारले
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