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________________ २८० षट्प्रांभृते - [५. ३२मरणं । आसन्नमरणमुच्यते-निर्वाणमार्ग प्रस्थितसंयतसार्थात् प्रच्युतः आसन्न उच्यते, तदुपलक्षणं पार्श्वस्थस्वच्छन्दकुशीलसंसक्तानां । ऋद्धिप्रिया रसेष्वासक्ता दुःखभीरवः सदा दुःखकातराः कषायपरिणताः संज्ञावशगाः पाप-श्रुताभ्यासकारिणः त्रयोदशक्रियास्वलसाः सदा संक्लिष्ट चेतसः भक्ते उपकरणे च प्रतिबद्धा निमित्तमंत्रौषधयोगोपजीविनः गृहस्थवयावृत्यकरा गुणहीना गुप्तिसमितिष्वनुद्यता मन्दसंवेगा दशधर्माकृतबुद्धयः शबलचारित्रा आसन्ना उच्यन्ते । ते यद्यन्ते आत्मशुद्धि कृत्वानियन्ते तदा प्रशस्तमेव मरणं । बालपंडितमरणं श्रावकस्य । सशल्यभरणं सुगमं । पलायमरणमुच्यते विनयवैयावृत्यादावकृतादरः प्रशस्तक्रियोद्वहनालसः त्रयोदशचारित्रेषु वीर्यनिगृहनपरो धर्मचिन्तायां निद्रापूर्णित इव ध्याननमस्कारादेः पलायते पलायमरणं । इन्द्रियवेदनाकषायनोकषायार्तमरणं वशार्तमरणं अप्रतिसिद्धेऽननुज्ञाते च मरणे विप्पाणसमरणं, विप्राणसमरणमुच्यते-गृध्रपृष्ठिमिति संज्ञिते ज्योतिष्क देवोंमें, व्यन्तर देवोंमें तथा द्वोप समुद्रोंमें ज्ञान-पण्डित मरण होता है, परन्तु मनः पर्यय ज्ञान मरण मनुष्य लोक ( अढाई द्वोपमें ) ही होता है। ७. आसन्नमरण-अब आसन्न मरणका स्वरूप कहा जाता है। मोक्षमार्गमें चलने वाले संयमीजनोंके समूहसे जो च्युत हो गया है, उसे आसन्न कहते हैं। यह आसन्न शब्द उपलक्षण है, अतः पार्श्वस्थ, स्वच्छन्द, कुशील और संसक्त इन भ्रष्ट मुनियोंका भी उसीसे ग्रहण समझना चाहिये। जिन्हें ऋद्धियाँ प्रिय हों, जो रसोंमें आसक्त हों, दुःखसे डरते हों सदा दुःखके समय दीनता दिखलाने वाले हों, कषाय भावसे युक्त हों, आहारादि संज्ञाओंके वशीभूत हों, पापके समर्थक शास्त्रोंका अभ्यास करने वाले हों, तेरह प्रकारकी क्रियाओंके पालन करने में आलसी हों, जिनका चित्त सदा संक्लेश से युक्त रहता है, जो आहार तथा उपकरणोंमें सदा उपयुक्त रहते हैं, निमित्त ज्ञान, मन्त्र, औषध तथा विषशोधनकी कला आदिसे आजीविका करते हैं अर्थात् इन कार्योंके द्वारा गृहस्थों को आहार देनेके निमित्त अपनी ओर आकृष्ट करते हैं, गृहस्थोंकी वयावृत्य करते हैं, गुणोंसे होन हैं अर्थात् मूलगुणोंका जो निर्दोष पालन नहीं करते हैं, गुप्ति और समितियोंके विषयमें अनुद्यमी हैं, जिनका संवेग १. पापश्रुत्याभ्यास० म०। २. अप्रसिद्ध म। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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