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-५. ३२] भावप्राभृतम्
२७९ इच्छाप्रवृत्तमनिच्छाप्रवृत्तं चेति । तत्रेच्छाप्रवृत्तमग्निना घूमेन शस्त्रेण विषेणोदकेन मरुत्प्रपातेनोच्छ्वासरोधेन शीतपातेनोग्णपातेन रज्वा क्षुधा तृषा जिव्होत्पाटनेन विरुद्धाहारसेवनेन च मरणमिच्छामरणं । कालेऽकाले वाऽध्यवसानादिना विना जिजीविषोमरणमनिच्छाप्रवृत्तं । पंडितमरणमुच्यते-पंडितश्चतुर्घा व्यवहारपंडितः सम्यक्त्वपंडितो ज्ञानपंडितश्चारित्रपंरितश्चेति । लोकवेद समयगतव्यवहारनिपुणो व्यवहारपंडितः, अथवानेकशास्त्रज्ञः शुश्रूषादिबुद्धिगुणसमन्वितो व्यवहारपंडितः । त्रिविधान्यतमसम्यक्त्वः दर्शनपंडितः । पंचविधज्ञानपरिणतो ज्ञानपंडितः । पंचविधचारित्रान्यतमचारित्रपरिणतश्चारित्रपंडितः । नरकेषाभवनेषु विमानेषु ज्योतिष्केषु वानव्यन्तरेषु द्वीपसमुद्रेषु च ज्ञानपंडितमरणं । 'मनःपर्ययमरणं मनुष्यलोक एव
उसे व्यवहार बाल कहते हैं । मिथ्यादृष्टि जीव दर्शन बाल हैं । जो वस्तुके यथार्थ स्वरूप को ग्रहण करने वाले ज्ञानसे रहित हैं वे ज्ञान-बाल हैं
और जो चारित्रसे रहित हैं वे चारित्र-बाल कहलाते हैं। इनमें से दर्शन बालमरण दो प्रकारका है-१ इच्छा प्रवृत्त और अनिच्छा प्रवृत्त । उनमें इच्छा पूर्वक अग्नि, धुवाँ, शस्त्र, विष, पानी, पर्वतसे गिरना, श्वासरोकना, शीतमें पड़ना, उष्णमें पड़ना, रस्सी, भूख, प्यास, जिह्वाका उखाड़ना और विरुद्ध आहारके सेवन से जो मरण होता है, वह इच्छा मरण कहलाता है। योग्य काल अथवा अकाल में मरनेके अभिप्राय के बिना जीवित रहनेके इच्छुक प्राणीका जो मरण है वह अनिच्छा प्रवृत्त मरण है।
६. पण्डित मरण-अब पण्डित मरण कहा जाता है। पण्डित चार प्रकारके होते हैं-१ व्यवहार पंडित, २ सम्यक्त्व पण्डित, ३ ज्ञान पण्डित और ४ चारित्र-पण्डित । लोक, वेद और समयानुकूल व्यवहारमें जो निपुण है वह व्यवहार पण्डित है अथवा जो अनेक शास्त्रों का जानकार है और शुश्रूषा-श्रवण करने की इच्छ: आदि बुद्धिके गुणोंसे सहित है वह व्यवहार पण्डित है । जो औपशमिक, क्षायिक अथवा क्षायोपशमिक इन तीन सम्यग्दर्शनों में से किसी एक सम्यग्दर्शन से सहित है वह दर्शनपण्डित है । जो मति, श्रुत, अवधि, मनपर्यय और केवल इन पाँच प्रकारके सम्यग्ज्ञानों से परिणत है वह ज्ञान-पण्डित है और जो सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म-साम्पराय और यथाख्यात इन पाँच प्रकारके चारित्रों में से किसो एक चारित्रसे सहित है वह चारित्र पण्डित है। नरकोंमें, भवनवासो देवोंके भवनोंमें, स्वर्गके विमानोंमें
१. मनुष्यलोक एव केवलमनःपर्ययज्ञानपण्डितमरणं भवति-भगवती आराधना ।
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