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षनाभृते
[५.३२
भवति-देशतः सर्वतो वा सादृश्येनावधीकृतेन विशेषितं मरणमवधिमरणमिति । साम्प्रतेन मरणेनासादृश्यभावि यदि मरणमाद्यन्तमरणमुच्यते । आदिशब्देन साम्प्रतं प्राथमिकं मरणमुच्यते, तस्यान्तो विनाशभावो यस्मिन्नुत्तरमरणे । तदेतदाद्यन्तमरणमुच्यते । प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशैर्यथाभूतैः साम्प्रतमुपैति मृति तथाभूतां यदि सर्वतो देशतो वा नोपैति तदाद्यन्तमरणं । बालमरणमुच्यते बालस्य मरणं बालमरणं । स च बालः पंचप्रकारोऽव्यक्तबालो व्यवहारवालो ज्ञानबालो दर्शनबालश्चारित्रबालः । धर्मार्थकामकार्याणि न वेत्ति न तदाचरणसमर्थशरीरोऽव्यक्तबालः । लोकवेदसमयव्यवहारान् न वेत्ति शिशु व्यवहारबालः । मिथ्यादृष्टयो दर्शनबालाः । वस्तुयाथात्म्यपाहिज्ञानहीना ज्ञानबालाः ।अचारित्राश्चारित्रवाला। दर्शनबालमरणं द्विविध
मरण कहते हैं और जो आयु वर्तमान कालमें प्रकृत्यादि विशिष्ट होकर जैसी उदय आती है, वैसी ही आयु यदि किसी अंश में सदृश होकर बंधेगी और भविष्यत् कालमें उदय आवेगी तो उसे देशावधि मरण कहते हैं । अभिप्राय यह है कि कुछ अंश में अथवा पूर्ण रूपसे सादृश्य जिसमें पाया जाता है ऐसा अवधिसे विशिष्ट अर्थात् जिसमें पूर्ण सादृश्य मर्यादित हुआ है अथवा कुछ हिस्सेमें सादृश्यकी मर्यादा है और कुछ हिस्सेमें नहीं है ऐसे मरणको अवधि मरण कहते हैं।
४. आचन्त मरण-वर्तमानकालमें जैसा मरण जीवको प्राप्त हुआ है वैसा अर्थात् सदृश मरण आगे प्राप्त न होना आद्यन्त-मरण कहा जाता है। यहां आदि शब्द से वर्तमानकालिक प्रथम कहा जाता है उसका अन्त अर्थात् विनाश जिस आगामी मरण में हो वह आद्यन्त मरण कहलाता है ( आदेः अन्तो यस्मिस्तत् आद्यन्तं तच्च तन्मरणञ्चेति आद्यन्तमरणम् ) । तात्पर्य यह है कि वर्तमान में जीव, जिसप्रकारके प्रकृति, स्थिति, अनुभव और प्रदेशके द्वारा जैसी मृत्युको प्राप्त होता है वैसी मृत्युको एक-देश अथवा सर्व-देश रूपसे भविष्यत् में प्राप्त न हो तो वह आद्यन्त मरण कहा जाता है।
५. बालमरण-अब बालमरण कहा जाता है। बालकका मरण सो बालमरण है। वह बाल पांच प्रकार का है-१ अव्यक्त बाल, २ व्यवहार बाल, ३ ज्ञान बाल, ४ दर्शन बाल और ५ चारित्र बाल । जो धर्म अर्थ और कामके कार्यको नहीं जानता है और न उनके आचरण में जिसका शरीर समर्थ है वह अव्यक्त बाल कहलाता है। जो लोक वेद और समयके व्यवहार को नहीं जानता है अथवा शिशु अवस्था वाला है
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