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________________ ५. ३२] भावप्रामृतम् २७७ समुद्रादिकल्लोलवत्प्रतिसमयमायुस्त्रुट्यति तवावीचिकामरणं स्थितिप्रदेशवीचिकाभेदात्तद्विविधमप्येकविधं। भवान्तरप्राप्तिरनन्तरोपसृष्टपूर्वभवविगमनं तद्भवमरणमुच्यते । तत्त्वनन्तशः प्राप्तं जीवेनेति ज्ञातव्यं, तेन तद्भवमरणं न दुर्लभं । अवधिमरणं नाम कथ्यते-यो यादृशं मरणं साम्प्रतमुपैति तादृशमेव यदि मरणं भविष्यत् तदवधिमरणं, तद्विविधं देशावधिमरणं सर्वावधिमरणं चेति । तत्र सर्वावधिमरणं नाम यदायुर्यथाभूतमुदेति साम्प्रतं प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशैस्तथाभूतमेवायुः प्रकृत्यादिविशिष्टं पुनर्बघ्नात्युदेष्यति च यदि सर्वावधिमरणं । यत्साम्प्रतमुदेत्यायुर्यथाभूतं तथाभूतमेव बध्नाति देशतो यदि तद्देशावधिमरणं । एतदुक्तं आगे मरण के सत्तरह भेदों का संक्षिप्त स्वरूप कहते हैं १ आवीचिका मरण, २ तद्भव मरण, ३ अवधि मरण, ४ आद्यन्त मरण, ५ बालमरण, ६ पण्डित मरण, ७ आसन्न मरण, ८ बालपण्डित मरण, ९ सशल्य मरण, १० पलाय मरण, ११ वशात्तं मरण, १२ विप्राणस मरण, १३ गृढपृष्ठ मरण, १४ भक्त-प्रत्याख्यान मरण, १५ प्रायोपगमन मरण, १६ इङ्गिनी मरण और १७ केवलिमरण। इनका स्वरूप इस प्रकार है १. आवीचिका मरण-समुद्रादि की लहरों के समान जो आयु प्रतिसमय कम होती जाती है वह आवीचिका मरण है । यह मरण स्थिति वीचिका और प्रदेश वोचिका के भेदसे यद्यपि दो प्रकारका है तथापि सत्तरह भेदों में एक सामान्य भेद ही लिया गया है। . . . २. तद्भव-भरण-भवान्तर की प्राप्ति होना अर्थात् आगामी अनन्तर शरीर के द्वारा उपसृष्ट होनेपर पूर्व भवका छूट जाना तद्भव मरण है। यह तद्भवमरण इस जोवने अनन्त बार प्राप्त किया है इसलिये दुर्लभ .. ३ अवधि-मरण-जो प्राणी जिस प्रकारका मरण वर्तमान कालमें प्राप्त करता है वैसा ही मरण यदि आगामी कालमें हो तो उस मरण को अवधि-मरण कहते हैं । यह अवधि-मरण १ देशावधि मरण और २ सर्वाबपि मरण के भेद से दो प्रकारका है। जो आयु वर्तमान में प्रकृतिस्थिति-अनुभाग और प्रदेश सहित जैसी उदय में आती है वैसी ही आयु फिर प्रकृत्यादि विशिष्ट बंधकर यदि उदयमें आवेगी तो उसका सर्वावधि १. भविष्यति म०। १. मरणाणि सत्तरस देसिदाणि तित्यंकरेंहि जिणवयणे । तत्व वि य पंच इह संगहेब मरवाणि बोजामि। -प्रथम बावास मनाती बारापना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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