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________________ २७ पदार्थकी इच्छा नहीं करता वह शीघ्र ही अनुपम सुखको प्राप्त करता है - यह निश्चय जानो । ' ३. सुत्त पाहुड --- सत्ताईस गाथाओंसे युक्त इस पाहुडके प्रारम्भ में ग्रंथकारने अरहंत द्वारा प्ररूपित गणधर देवों द्वारा अच्छी तरहसे जिसका गुम्फन किया है। तथा शास्त्रका अर्थ खोजना ही जिसका प्रयोजन है उसे सूत्र कहा है । ऐसे ही सूत्र से श्रमण अपना परमार्थ साधते हैं। आगे सूत्रको महत्ता वर्णित करते हुये कहा है कि जिस प्रकार सूत्र ( धागा या डोरा ) से रहित सुई नष्ट (गुम ) हो जाती है उसी तरह शास्त्र रहित मनुष्य भी नष्ट हो जाता है और जैसे – सूत्र : धागा ) सहित सुई खोती नहीं है, उसी तरह सूत्र ( आगम शास्त्र) सहित अर्थात् आगमोंके अध्ययन, मनन और तदनुसार आचरणसे युक्त पुरुष नष्ट नहीं होता अर्थात् भटकता नहीं है । अपितु उसका चतुर्गति भ्रमण रूप संसारका जल्दी अन्त हो जाता है । 3 - यह पाहुडे मुनियोंके आचार-विचारका संक्षेपमें प्रतिपादन करनेवाला महत्त्वपूर्ण प्रामाणिक तथा प्राचीन दस्तावेज है । यहाँ सकारण स्त्री प्रव्रज्या तकका निषेध किया गया है। इसी तरह मुनियोंको वस्त्रधारणका सर्वथा नियेध किया गया है । यहाँ यह भी बतलाया गया है कि जिनसूत्रों में तीन लिंग (वेष ) प्रतिपादित है । इनमें प्रथम है सर्वश्रेष्ठ नग्न दिगम्बर साधुका, दूसरा उत्कृष्ट श्रावकका और तृतीय है आर्यिकाओंका । इन तीनोंके अतिरिक्त ऐसा कोई वेष ( लिंग ) नहीं है जो मोक्षमार्ग में ग्राह्म हो । ४. बोष पाहुड – इसमें बासठ गाथायें हैं जिनमें आयतन, चैत्यगृह, जिनप्रतिमा, दर्शन, जिनबिम्ब, जिनमुद्रा, आत्मज्ञान, देव, तीर्थ, अर्हन्त और प्रवज्याइन ग्यारह स्थानों के माध्यमसे दिगम्बर धर्म और मुनिचर्याका स्वरूप बहुत ही उत्कृष्ट रूपमें प्रतिपादित किया गया है । ऐतिहासिक दृष्टिसे इस पाहुडकी अंतिम दो गाथायें अतिमहत्वकी हैं जिनमें आचार्य कुन्दकुन्दने अपने गमकगुरू भगवान्... श्रुतकेवली भद्रबाहुका जयघोष किया है तथा अपनेको उनका शिष्य बतलाया है । ५. भाव पाहुड – एक सौ त्रेसठ गाथाओं वाले इस पाहुडमें "भावशुद्धि " की महिमाका उत्कृष्ट प्रतिपादन करते हुये भावको ही गुण और दोषका कारण १. चारित्र गाथा ४२.. २. सुत्तपाहुड गाथा १. ३. सुतं हि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुर्णादि । सुतं जहा असुत्ता णासदि सुते सहा णो वि ॥। वही : गाथा ३. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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