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________________ बोषनामृतम् २३७७ मलीमसाङ्गो व्युत्सृष्टस्वकायप्रभवप्रभः। .. प्रभोः प्रभां मुनिया॑यन् भवेत्क्षिप्रं प्रभास्वरं ॥८॥ स्वं मणिस्नेहदीपादितेजोऽपास्य जिनं भजन् । . तेजोमयमयं योगी स्यात्तेजोवलयोज्वलः ॥ ९॥ त्यक्त्वाऽस्त्रवस्त्रशस्त्राणि प्राक्तनानि प्रशान्तभाक् । जिनमाराध्य योगीन्द्रो धर्मचक्राधिपो भवेत् ॥ १० ॥ त्यक्तस्नानादिसंस्कारः संश्रित्य स्नातकं जिनं । मनि मेरोरवाप्नोति परं. जन्माभिषेचनं ॥ ११ ॥ स्वं स्वाम्यमैहिकं त्यक्त्वा परमस्वामिनं जिनं । .. सेवित्वा सेवनीयत्वमेष्यत्येष जगज्जनः ॥ १२ ॥ स्वोचितासनभेदानां त्यागात्त्यक्ताम्बरो मुनिः । सिंह विष्टरमव्यास्य तीर्थप्रख्यापको भवेत् ॥ १३ ॥ स्वोपधानाद्यनादृत्य योऽभून्निरुपधिमुनिः । .... शयानः ‘स्थण्डिले बाहुमात्रार्पितशिरस्तटः ॥ १४ ॥ इच्छा करता हुआ वह मुनि अपने शरीर के सौन्दर्य को मलिन करता हुआ कठिन तपश्चरण करे ॥७॥ जिसका शरीर मलिन हो गया है, जिसने अपने शरीरसे उत्पन्न होनेवाली प्रभाका त्याग कर दिया है और जो अरहन्त देवकी प्रभा का ध्यान करता है ऐसा साधु शीघ्रही देदीप्यमान हो जाता है अर्थात् दिव्य-प्रभा आदि प्रभाओं को प्राप्त करता है ||८|| जो मुनि अपने मणि और तेल के दीपक आदिका तेज छोड़कर तेजोमय जिनेन्द्र भगवान् की आराधना करता है वह प्रभामण्डल से उज्ज्वल हो उठता है ॥९॥ जो पहले के अस्त्र, वस्त्र और शस्त्र आदिको छोड़कर अत्यन्त शान्त होता हुआ जिनेन्द्र भगवान् की आराधना करता है वह योगिराज धर्मचक्रका अधिपति होता है ॥१०॥ जो मुनि स्नान आदिका संस्कार छोड़कर केवली जिनेन्द्र का आश्रय लेता है अर्थात् उनका चिन्तवन करता है वह मेरु पर्वतके मस्तक पर उत्कृष्ट जन्माभिषेक को प्राप्त होता है॥११॥ जो मुनि अपने इस लोक-सम्बन्धी स्वामीपनेको छोड़कर परमस्वामी श्री जिनेन्द्र देवको सेवा करता है वह जगत् के जीवोंके द्वारा सेवनीय होता है अर्थात् जगत् के सब जीव उसको सेवा करते हैं ॥१२॥ जो मुनि अपने योग्य अनेक आसनों के भेदोंका त्याग करके दिगम्बर हो जाता है वह सिंहासन पर आरूढ होकर तीर्थको प्रसिद्ध करने वाला ... अर्थात् सोधकर होता है ।।१३।। जो मुनि अपने तकिया आदिका अनादर Jain Education International För Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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