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________________ २१० षट्प्राभूते [४.४५मिथ्यात्ववेदी हास्यादिषट् कषायचतुष्टयम् । .. रागद्वेषौ च सङ्गाः स्युरन्तरङ्गाश्चतुर्दश ॥ ( वावीसपरीसहजियकषाया) द्वाविंशति-परिषहजित् प्रव्रज्या भवति । के ते द्वाविंशति परीषहाः ? क्षुधाजयः, पिपासा-तृषाजयः, शीतजयः उष्णजयः, दंशमशक सर्वोपघातसहनं, नग्नत्वसहनं, अरतिजयः, स्त्रीपरिषहजयः, चर्या-गमनं तस्य जयः, निषद्या-उपवेशनं तस्य जयः, शथ्यासहनं, आक्रोशजयः, अनिष्टवचनसहनं, वधसहन, याचनसहनं-न किमपि याचते, अलाभसहनमन्तराय-सहनं . . रोगसहन, तृणस्पर्श सहनं, मलसहनं, लोचसहनं च, सत्कारपुरस्कारः-पूजाया का वर्ग, ९ कुप्य-रेशमी सूती कोशा आदिके वस्त्र तथा १० चन्दन अगुरु आदि सुगन्धित पदार्थ । अभ्यन्तर परिग्रह के चौदह भेद हैं मिथ्यात्व-मिथ्यादर्शन, वेद हास्यादि छह नो-कषाय, क्रोधादि चार कषाय-राग और द्वेष ये चौदह अन्तरङ्ग परिग्रह हैं। जिन दीक्षा, निवास स्थान और बाह्याभ्यन्तर भेदवाले चौबीस प्रकारके परिग्रह से रहित हैं। बाईस परीषहों को जीतने वाली है तथा कषाय से रहित हैं। वे बाईस परोषह कौन हैं ? इसके उत्तर में बाईस परोषहों के नाम गिनाते हैं क्षुधाजय-भूखकी बाधाको जीतना, २ पिपासाजय-प्यास की बाधाको जोतना, ३ शीतजय-शीतको बाधा को जीतना, ४. उष्णजय-गर्मी की बाधा को जीतना, ५ दंशमशक सर्वोपघात सहनडांस मच्छर आदिके सब उपद्रव सहन करना, ६ नग्नत्व-सहन-नग्न रह कर विकारीभाव नहीं लाना, ७ अरतिजय-अप्रीति को सहन करना, ८ स्त्रीपरिषहजय-स्त्रियों के द्वारा किये हुए हाव भाव आदि उपद्रवों के होते हुए निर्विकार रहना, ९ चर्या-पैदल चलनेका दुःख सहन करना, १० निषद्या-बहुत देर तक एक ही आसन से बैठने का दुःख सहन करना, ११ शय्या-ककरीली पथरीली शय्या पर शयन करने का दुःख सहन करना, १२ आक्रोश जय-अनिष्ट वचनोंको सहन करना, १३ वध सहन-मारपीट आदिका दुःख सहन करना, १४ याचन सहन-याचना नहीं करना, १५ अलाभ सहन-आहार आदि में अन्तराय आने पर दुःख नहीं करना, १६ रोग सहन-रोगोंकी पीड़ा सहन करना, १७ तृणस्पर्शसहन-कांटे आदिका दुःख सहन करना, १८ मलसहन-लोचसहन-शरीरपर लगे हुए मलका सहन करना तथा केशलोंच का दुःख उठाना, १९ सत्कारपुरस्कार-पूजा न करने और सन्मान पूर्वक अग्रासन न देनेका दुःख सहन करना, २० प्रज्ञापरीषहजय-ज्ञानका गर्व दूर करना, २१ अज्ञानपरीषह जय-यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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