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________________ बोषत्रामृतम् २०९ हत्य धम्य॑ध्यानशुक्लध्यानद्वये प्रवर्तनं विधिनिषेधरूपं । (मुणिवरवसहा णिइच्छंति) मुनिवरवृषभाः सर्वपाषण्डिन्योऽधिकश्रेष्ठाः सर्वलोक-प्रशंसनीयाः परमार्थयतयः दिगम्बरा नि-अतिशये नेच्छन्ति वेध्यं वाञ्छन्ति पुनः पुनरम्यासं कुर्वन्ति ॥४४॥ गिहगंथमोहमुक्का वावीसपरीसहा जियकसाया। पावारंभविमुक्का पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥४५॥ गृहग्रन्थमोहमुक्ता द्वाविंशतिपरीषहजितकषाया। पापारम्भविमुक्ता प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥४५॥ ( गिहगंथमोहमुक्का ) गृहस्य निवासस्य, ग्रन्थस्य परिग्रहस्य बाह्मस्य दशप्रकारस्य मोहेन मुक्ता ममेदंभावरहिता प्रव्रज्या दीक्षा भवति। के ते दश बाह्म परिग्रहाः ? क्षेत्र सस्याधिकरणं । वास्तु गृहं । हिरण्यं रूप्य' द्रध्यादि । सुवर्ण काञ्चनं । धनं गोमहिष्यादि । धान्यं व्रीह्यादि । दासी कर्मकरी । दासः पुनपुंसकवर्गः कर्मकरः । कुप्यं क्षौम-कार्पास-कौशेय-चन्दनागुर्वादि । चतुर्दशाभ्यन्तरपरिग्रहरहिता' के ते चतुर्दशाभ्यन्तरपरिग्रहाः ? धर्मोपदेश है। आर्तध्यान और रौद्रध्यान को छोड़कर धर्म्यध्यान तथा शुक्लध्यान में प्रवृत्ति करना इस तरह विधि निषेध रूप ध्यान है। ऐसे दिगम्बर साधु, सब साधुओंसे अधिक श्रेष्ठ हैं, सब लोगों के द्वारा प्रशंसनीय हैं तथा परमार्थ यति हैं वास्तविक साधु हैं, वे इन वेध्यों-ध्यानयोग्य वस्तुओं की अतिशय इच्छा रखते हैं-बार बार इनका अभ्यास करते हैं । ४४॥ गाथार्थ-जो निवास स्थान और परिग्रह के माहसे रहित है, बाईस परीषहोंको जीतनेवाली है, कषायसे रहित है तथा पापके आरम्भ से अथवा पापपूर्ण खेती आदिके आरम्भ से मुक्त है ऐसी दीक्षा कही गई है ॥४५॥ ' विशेषार्थ-गृहग्रन्थमोहमुक्ता-गृह का अर्थ निवास-स्थान है, ग्रन्थ परिग्रह को कहते हैं, वह परिग्रह बाह्य और अभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का है। उनमें बाह्य परिग्रहके दश भेद हैं-१ क्षेत्र-जहाँ अनाज पैदा होता है, २ वास्तु-मकान, ३ हिरण्य-चांदी से निर्मित पदार्थ, ४ सुवर्णसोना ५ धन-गाय भैंस आदि, ६ धान्य-धान गेहूँ आदि अनाज ७ दासीकाम करने वाली स्त्री ८ दास कार्य करने वाला पुरुष अथवा नपुसकों १. परीसहाजि अकसाया म०। २. रूप्यद्रम्मादि क० म० । रूप्यद्रुमादि उ० । ३. रहिता क.स. ग. ० ० म०। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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