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________________ १६६ षट्प्राभृते [ ४. १७ ध्यायस्य सर्वसाघोश्च प्रणामं कुरुत तयोरपि जिन विम्बस्वरूपत्वात् ( सव्वं पुज्जं च विजय वच्छल्लं ) सर्वां पूजामष्टविधमर्चनं च कुरुत यूयमिति, तथा विनयं हस्तयोटनं पादपतनं सन्मुखगमनं च कुरुत, वात्सल्यं भोजनं पानं पादमर्दनं शुद्धतैलादिनाङ्गाभ्यञ्जनं तत्प्रक्षालनं चेत्यादिकं कर्म सर्व तीर्थङ्कर नाम कर्मोपार्जन - हेतुभूतं वैयावृत्यं कुरुत यूयम् । उक्तं च समन्तभद्रेण महामुनिना - 'व्यापत्तिव्यपनोदः पदयोः संवाहनं च गुणरागात् वैयावृत्यं यावानुपग्रहोऽन्योऽपि संयमिनाम् ॥ १ ॥ तथा चकारात्पाषाणादिघटितस्य जिनविम्बस्य पञ्चामृतैः स्नपनं, अष्टविधैः पूजाद्रव्यैश्च पूजनं कुरुत यूयम् । वन्दनां भक्तिं च कुरुत । यदि तथाभूतं जिनविम्बं न मानयिष्यथ गृहस्था अपि सन्तस्तदा कुम्भीपाकादिनरकादी पतिष्यथ यूयम् । तथा चोक्तं सोमदेवेन स्वाभिना - अथवा अष्टाङ्ग प्रणाम करो । 'च' शब्द से सूचित होता है कि उपाध्याय और सर्वं साधु को भी प्रणाम करो। क्योंकि वे दोनों भी जिनविम्ब स्वरूप ही हैं । सब प्रकार की अथवा अष्ट द्रव्य से होने के कारण अष्ट प्रकार की पूजा करो, इसके सिवाय विनय हाथ जोड़ना, पैर पड़ना तथा सम्मुख जाना आदि भी करो । वात्सल्य स्नेह, भोजन, पान, पादमर्दन, शुद्ध तेल आदि के द्वारा शरीर का मालिश करना, तथा धोना आदि सब कार्य तीर्थंकर नामकर्म के बन्ध में कारणभूत वैय्यावृत्य भावना में शामिल हैं सो इन्हें भी करो । जैसा कि महामुनि समन्तभद्र स्वामो ने कहा हैव्यापत्ति—संयमी जनोंकी व्यापत्ति-विघ्न बाधाको दूर करना, पैर दाबना तथा गुणों में राग होनेके कारण उनका जितना भी उपकार है वह सब वैयावृत्य है । 1 मूल गाथा में 'तस्स' पदके आगे जो चकार का ग्रहण किया है उससे यह अर्थ सूचित होता है कि आप लोग पाषाण आदि से निर्मित जिन प्रतिमा का पञ्चामृत से अभिषेक और आठ प्रकारकी पूजा सामग्रीसे पूजा करो, वन्दना तथा भक्ति भी करो । यदि तुम लोग गृहस्थ होते हुए भी तथाभूत जिनप्रतिमा की मान्यता नहीं करोगे तो कुम्भीपाक आदि नरकों में पड़ोगे। जैसा कि सोमदेव स्वामी ने कहा है १. रत्नकरण्ड श्रावकाचारः । २. सोमदेव सूरिस्वामिना क० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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