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________________ -४. १-२ ] बोधप्राभृतम् सन्तोषकारी साधूनां निर्यापक इमेऽष्ट च । 'दिगम्बरवेष्यनुद्दिष्टभोजी ( ज्य) शय्याशनोति च ॥ २ ॥ ६. दोषाभाषक - दोष छिपाने वाले शिष्य से दोष कहलवाने की सामर्थ्यं रखने वाले आचार्य को दोषाभाषक कहते हैं । इसका दूसरा नाम उत्पीडक है । जिस प्रकार चतुर चिकित्सक ब्रण के भीतर छिपे हुए विकार को पोडित कर बाहर निकाल देता है उसी प्रकार आचार्य भी शिष्य के छिपाये हुए दोषको अपनी कुशलतासे प्रगट करा लेता है। ७. अस्रावक - जो किसी के गोप्य दोष को कभी प्रगट नहीं करता वह अस्रावक है । जिस प्रकार संतप्त तवे पर पड़ी पानी की बूँद वहीं शुष्क हो जाती है इसी प्रकार शिष्य द्वारा कहे हुए दोष जिसमें शुष्क हो जाते हैं अर्थात् जो किसी दूसरे को नहीं बतलाते हैं, वे अस्रावक हैं । ८. संतोषकारी - जो साधुओं को सन्तोष उत्पन्न करने वाला हो अर्थात् क्षुधा, तृषा आदि की वेदना के समय हितकर उपदेश देकर साधुओं को संतुष्ट करता हो उसे संतोषकारी कहा है। इसका दूसरा नाम सुखावह भी है। १३: इस प्रकार निर्यापक अर्थात् सल्लेखना करानेवाले आचार्यमें ये आठ गुण होते हैं । अब आगे स्थिति-कल्प रूप दश गुणों को कहते हैं ९. दिगम्बर - आचेलक्य - ' अथवा नग्न मुद्राको धारण करने वाले हों उन्हें दिगम्बर कहते हैं । यह निष्परिग्रहता और निर्विकारता की परिचायक मुद्रा है। १०. अनुद्दिष्ट भोजी - मुनियों के उद्देश्य से बनाये हुए भोजन पान को जो ग्रहण नहीं करता है वह अनुद्दिष्ट भोजी है । ११. अशय्याशनी -- वसतिका बनवाने वाला और उसका संस्कार करने वाला तथा वहाँ पर व्यवस्था आदि करनेवाला ये तीनों ही शय्या १. दिगम्बरोऽत्यनुद्दिष्ट म० ग० । २. आचेलक्योद्देशिकशय्याघर राजकीयपिण्डोज्झाः । कृतिकर्शन तारोपणयोग्यत्वं ज्येष्ठता प्रतिक्रमणम् ॥८०॥ मासैकवासिता स्थितिकल्पो योगश्च वार्षिको दशमः । तनिष्ठः पृथुकीर्तिः क्षपकं निर्यापको विशोधयति ॥ ८१ ॥ Jain Education International — अनगारधर्मामृत अध्याय ९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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