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-३. १०-११] सूत्रप्राभृतम्
११५ णिच्चेलपाणिपत्तं उवइटुं परम जिणवारदेहि । एक्को हि मोक्खमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे ॥१०॥
निश्चेलपाणिपात्रमुपदिष्ट परमजिनवरेन्द्रैः। --
एको मोक्षमार्गः शेषाश्च अमार्गाः सर्वे ॥ १० ॥ ( णिच्चेलपाणिपत्त) निश्चलस्य मुनेः पाणिपात्रं करयोः पुटे भोजनमुक्तं । ( उवइठें परम जिणवरिदेहिं ) उपदिष्टं परमजिनवरेन्द्रैस्तीर्थकरपरमदेवैः । ( एक्को हि मोक्खमग्गो ) एक एव मोक्षमार्गो निग्रन्थलक्षणः ( सेसा य अमग्गया सव्वे ) शेषा मृग चर्म वल्कल-कर्पासपट्ट कूल-रोमवस्त्र-तट्ट-गोणीतृण-प्रावरणादिसर्वे, रक्तवस्त्रादि पीताम्बरादयश्च विश्वे, अमार्गाः संसारपर्यटन हेतुत्वान्मोक्षमार्गा न भवन्तीति भव्यजनातव्यम् ॥१०॥
जो संजमेसु सहिओ आरंभपरिग्गहेसु विरओ वि । सो होइ बंदणोओ ससुरासुरमाणुसे लोए ॥११॥
यः संयमेषु सहितः आरम्भपरिग्रहेष विरतः अपि ।
स भवति वन्दनीयः ससुरासुरमानुषे लोके ॥११॥ (जो संजमेसु सहिओ ) यो मुनिर्न तु गृहस्थः संयमेषु सहितः इन्द्रियप्राणन संयमवान् भवति । ( आरंभपरिग्गहेसु विरओ वि ) आरम्भाः सेवाकृषिवाणिज्य
गावार्थ-तीर्थकर परमदेव ने नग्नमुद्राके धारी निग्रन्थ मुनिको ही पाणिपात्र आहार लेनेका उपदेश दिया है। यह एक निग्रन्थ-मुद्रा ही मोक्षमार्ग है, इसके सिवाय सब अमार्ग हैं-मोक्षक मार्ग नहीं हैं ॥१०॥
विशेषार्थ - तीर्थंकर परमदेव ने निश्चेल-वस्त्र मात्रके त्यागी-निर्ग्रन्थ मुनिको ही कर-पुटमें आहार लेनेका उपदेश दिया है। जिसमें मुनि नग्न . .म्हकर करपुट में ही आहार करते हैं, वह एक निर्ग्रन्थ-वेष ही मोक्षमार्ग
है। इसके सिवाय मृगचर्म, वृक्षोंके वल्कल, कपास, रेशम और रोमसे बने वस्त्र, टाट तथा तृण आदिके आवरण ( चटाई आदि ) को धारण करने वाले सभी साधु, तथा लाल वस्त्र और पीले वस्त्रको धारण करने वाले सभी लोग अमार्ग हैं-संसार, परिभ्रमणके हेतु होनेसे मोक्षमार्ग नहीं हैं, ऐसा भव्य जीवों को जानना चाहिये ॥१०॥ .
गाथार्ष-जो मुनि संयम से सहित है तथा आरम्भ और परिग्रह से विरत है वही सुर असुर और मनुष्यों से युक्त लोकमें वन्दनीय है ॥११॥
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