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________________ ११४ षट्प्राभृते [ ३.९ उक्किसीहचरियं बहुपरियम्मो य गुरुयभारो य । जो विहरइ सच्छंद पावं गच्छेदि होदि मिच्छतं ॥ ९ ॥ उत्कृष्टसिहचरितः बहुपरिकर्मा च गुरुकभारश्च । यः विहरति स्वच्छंद पापं गच्छति भवति मिथ्यात्वम् ॥ ९ ॥ ( उक्किट्ठसोहचरियं ) उत्कृष्टं सर्वयतिभ्योऽधिकं सिंहवन्निर्भयत्वेन चरितं चारित्रं यस्य स पुमानुत्कृष्टसिहचरितः । प्राकृतत्वादत्र नपुंसकत्वं । अथवा विहरतीति क्रियाविशेषणत्वाद् द्वितीयैकवचनं नपुंसकत्वं च । ( बहुपरियम्मो य गुरुय भारो य ) बहुपरिकर्मा चानेकतपोविधान- मण्डित-शरीरसंस्कारश्च मुनिगुरुतरभारश्च राजादिभयनिवारकः शिष्याणां पठनपाठनसमर्थो यात्रा - प्रतिष्ठादीक्षादानायुर्वेदज्योतिष्कशास्त्र निर्णयकारकः षडावश्यककर्मकर्मठो धर्मोपदेशनसमर्थः सर्वेषां यतीनां च नैश्चिन्त्यकारको गुरुभार उच्यते ईदृग्विधोऽपि गच्छनायको यतिः । ( जो विहरइ सच्छंद ) यो यतिः स्वच्छन्दं विहरति - जिनसूत्रं न प्रमाणयति (पार्व गच्छेदि होइ मिच्छतं ) स मुनिः पापं गच्छति प्राप्नोति - मिथ्यात्वं तस्य भवतीति तात्पर्यार्थः ॥ ९ ॥ गाथार्थ - जो मुनि सिंहके समान निर्भय रह कर उत्कृष्ट चारित्र धारण करते हैं, अनेक प्रकारके परिकर्म व्रत उपवास आदि करते हैं, तथा आचार्य आदि पदका गुरुतर भार संभालते हैं परन्तु स्वच्छन्द प्रवृत्ति करते हैं, आगम की आज्ञा का उल्लङ्घन करके मनचाही प्रवृत्ति करते हैं, वे पापको प्राप्त होते हैं एवं मिथ्यादृष्टि कहलाते हैं ||९|| विशेषार्थ - जो सिंहके समान निर्भय रहकर सब मुनियोंसे उत्कृष्ट चारित्र धारण करते हैं, अनेक प्रकारके तपोंसे जिनका शरीर मण्डित है, जो गुरुतर भारको धारण करते हैं, अर्थात् राजा आदिके भयका निवारण करते हैं, शिष्योंके पठन पाठनमें समर्थ हैं, यात्रा-प्रतिष्ठा दीक्षा-दान आयुर्वेद और ज्योतिष शास्त्र के निर्णय करने वाले हैं, छह आवश्यक कार्योंमें कर्मठ हैं, धर्मोपदेश देने में समर्थ हैं, सब मुनियों को निश्चिन्तता प्रदान करने वाले हैं। ऐसे गच्छके नायक होकर भी जो मुनि स्वच्छन्द विहार करते हैं अर्थात् जिनसूत्रको प्रमाण नहीं मानते, वे पापको प्राप्त होते हैं तथा उनकी मिथ्यात्व अवस्था होती है ||९|| १. गरुम म० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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