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________________ षप्रांभृते [ २. ३५-३६गमात्पादिदोष-रहितस्य भोजनस्य पुनः पुनः शोधितस्य प्रासुकस्य भोजनस्य .. ग्रहणं या समितिर्भवति सा तृतीया समितिः । ( आदाण चेव ) आदानं चैव यत्पुस्तककमण्डलुप्रभृतिकं गृह्यते तत्पूर्व निरीक्ष्यते पश्चान्मृदुना मयूरपिच्छेन प्रतिलिख्यते पश्चात् गृह्यते चतुर्थी समितिर्भवति । (णिखेवो ) यत्किचिद् वस्तु पुस्तककमण्डलुमुख्यं क्वचिन्निक्षिप्यते मुच्यते ध्रियते तन्निक्षेप-स्थानं दृष्ट्वा तथैव प्रतिलिख्य च प्रियते । मयूर--पिच्छस्यासन्निधाने मृदुवस्त्रेण कदाचित्तथा क्रियते निक्षेपणा नाम्नी पंचमी समितिर्भवति । ( संजम सोहि णिमित्ते ) एतत्स- . मितिपंचकं संयमस्य महाव्रत-पञ्चकस्य शोधिनिमित्तं भवति । यो मयूरपिच्छं वर्जितः साधुः स मासोपवासादिकं कुर्वन्नपि न शुद्धयतीति श्री कुन्दकुन्दभगवदभिप्रायः । (खंति जिणा पंच समिदीओ ) ख्यान्ति प्रकथयति के ? जिणा-तीर्थंकर परमदेवाः सामान्यकेवलिनः श्रुतकेवलि नश्चेति भावः । किं ख्यान्ति ? पंच समि विशेषार्थ-चार हाथ तक देखे हुए मार्ग में गमन करना ईर्यासमिति है। आगमके अनुसार वचन बोलना भाषासमिति है । चमड़ेसे विना छुए : तथा उद्गम और उत्पादादि दोषोंसे रहित प्रासुक आहारको बार बार शोधकर ग्रहण करना एषणासमिति है। पुस्तक कमण्डलु आदि जिस उपकरण को ग्रहण करना है उसे पहले अच्छी तरह देखा जाता है और फिर बादमें मयूर-पीछोसे उसका मार्जन किया जाता है, यह चौथी आदानसमिति है। और पुस्तक कमण्डलु आदि जो वस्तु छोड़ी तथा रखी जाती है उसे रखनेका स्थान देखकर तथा मयूरपोछीसे मार्जन कर रखना पाँचवीं निक्षेपणासमिति है। कदाचित् मयूरपोछी पासमें न हो तो ( समीपमें विद्यमान क्षुल्लक के ) कोमल वस्त्रसे भी परिमार्जन होता है परन्तु यह कादाचित्क अर्थात् किसी खास परिस्थिति में है । सामान्य रूपसे साधुको मयूर पिच्छीसे युक्त होना ही चाहिये । जो साधु मयूर पिच्छीसे रहित है वह मासोपवास आदि करता हुआ भी शुद्ध नहीं होता है, यह कुन्दकुन्द भगवान् का अभिप्राय है । ये पाँच समितियां, पांच महाव्रतों की शुद्धि के निमित्त हैं इसलिये जिन अर्थात् तीर्थंकर परमदेव, सामान्य केवली और श्रुत केवली इनका कथन करते हैं। यहां पांच समितियोंका संक्षेप से वर्णन किया है, इनका विस्तार श्री वट्टकेर तथा वीरनंदो आदि आचार्योंके द्वारा विरचित आचार ग्रन्थोंमें--मूलाचार, चारित्रसार आदि ग्रन्थोंमें जानना चाहिये । (अन्य ग्रन्थोंमें ईर्या १ भाषा २ एषणा ३ आदाननिक्षेपण ४ और उत्सर्ग ५ इस प्रकार पांच समितियां बतलाई हैं परन्तु यहाँ कुन्द कुन्द Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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