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________________ ९७ -२. ३५-३६ ] चारित्रप्राभृतम् आगे परिग्रह त्याग महाव्रत की पांच भावनाएं कहते हैंअपरिग्गह समणुण्णेसु सद्दपरिसरसरूवगंधेसु । रायद्दोसाईणं परिहारो भावणा होति ॥३५॥ अपरिग्रहे समनोज्ञषु शब्दस्पर्शरसरूपगन्धेषु । रागद्वेषादीनां परिहारो भावना भवन्ति ॥३५।। ( अपरिग्गहसमणुण्णेसु ) अपरिग्रहव्रते, अत्र लुप्तविभक्तिक पदम् । समणुण्णेसु-समनोज्ञेषु मनोज्ञसहितेषु अमनोज्ञेषु चेति शेषः । ( सद्दपरिसरसरूवगंधेसु ) शब्दस्पर्शरसरूपगन्धेषु पञ्चेन्द्रियविषयेषु । (रायबोसाईणं) रागद्वेषादीनां रागस्य द्वेषस्य च । आदिशब्दात्पादपूरणमेव । मनोज्ञेषु विषयेषु रागो न क्रियतेऽमनोज्ञेषु विषयेषु द्वेषो न क्रियते । इति रागद्वेषपरिहारः पञ्च भावना भवन्तीति ज्ञातव्यम् ॥३५॥ आगे पांच समितियोंका वर्णन करते हैंइरियाभासा एसण जा सा आदाण चेव णिखेवो। संजमसोहिणिमित्ते खंति जिणा पंच समिदीओ ॥३६॥ ईर्या भाषा एषणा या सा आदानं चैव निक्षेपः । संयमशोधिनिमित्तं ख्यान्ति जिनः पञ्च समितीः ॥३६॥ ( इरिया ) ईर्या समितिः चतुर्हस्तवीक्षितमार्गगमनम्। ( भासा ) भाषासमितिः आगमानुसारेण वचनं ( एसण ) एषणा समितिः चर्मणाऽस्पृष्टस्योद् गाथार्थ-मनोज्ञ और अमनोज्ञ भेदसे युक्त शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध इन पञ्च इन्द्रियोंके विषयोंमें राग-द्वेषका त्याग करना परिग्रह त्यागवतकी पांच भावनाएं हैं ॥३५॥ ' विशेषार्थ-शब्द आदि पञ्च इन्द्रियोंके इष्ट विषयों में राग नहीं करना और अनिष्ट विषयोंमें द्वेष नहीं करना ये पांच अपरिग्रह व्रतकी भावनाएं हैं। गाथामें आया हुआ 'अपरिग्गह' शब्द लुप्तविभक्ति वाला पद है, इसलिये उसका सप्तम विभक्ति रूप अर्थ करना चाहिये। इसी प्रकार 'रायदोसाईणं' में जो आदि पद है वह पाद-पूर्तिका ही कारण है ॥३५॥ पापा-जिनेन्द्र भगवान् ने संयम की शुद्धिके निमित्त ईर्या, भाषा, एषणा, आदान और निक्षेप इन पांच समितियोंका वर्णन किया है ।।३६।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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