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________________ - १० - आचार्य कुन्दकुन्द और उनका दिव्य अवदान तीर्थंकर महावीर और गोतम गणधर के बाद की उत्तरवर्ती जैन आचार्यों . का विशाल परम्परा में अनेक महान् आचार्यों का नाम श्रद्धापूर्वक लिया जाता है। जिनके अनुपम व्यक्तित्व और कर्तृत्व से भारतीय चिन्तन अनुप्राणित होकर . चतुर्दिक् प्रकाश की किरणें फैलाता रहा है, किन्तु इन सबमें अब से दो हजार वर्ष पूर्व युगप्रधान आचार्य कुन्दकुन्द ऐसे प्रखर प्रभापुञ्ज के समान महान् आचार्य हुए जिनके महान् आध्यात्मिक चिन्तन से सम्पूर्ण भारतीय मनीषा प्रभावित हुई. . और उसने एक अद्भुत मोड़ लिया। यही कारण है कि इनके परवर्ती सभी आचार्यों ने अपने को उनकी परम्परा का आचार्य मानकर उनकी सम्पूर्ण विरासत से जुड़ने में अपना गौरव माना तथा उनकी मूल-परम्परा तथा ज्ञान-गरिमा को एक स्वर से श्रेष्ठ मान्य करते हुए कहा मंगलं भगवदो वीरो मंगलं गोदमो गणी । मंगलं कोण्डकूदाइ, जेण्ह धम्मोत्थु मंगलं ॥ [मङ्गलं भगवान्वीरो मङ्गलं गौतमो गणी । मङ्गलं कुन्दकुन्दाों जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥] अर्थात् तीर्थंकर भगवान् महावीर-वर्धमान मंगलस्वरूप हैं । इनके प्रथम गणधर गौतम-स्वामी ( तीर्थंकर महावीर की दिव्यध्वनि के विवेचनकर्ता तथा द्वादशांग आगमोंके रचयिता ) मंगलात्मक हैं। आचार्य कुन्दकुन्द जैसे समर्थ आचार्योंकी आचार्य-परम्परा मंगलमय है तथा प्राणिमात्रका कल्याण करने वाला जैनधर्म सभीके लिए मंगलकारक है। शिलालेखों के अनुसार इनका जन्मस्थान कोणुकुन्दे प्रचलित नाम कोंग्कुन्दी (कुन्दकुन्दपुरम ) तहसील गुण्टूर है जो कि आन्ध्रप्रदेशके अतन्तपुर जिले में कोण्डकुन्दपुर अपरनाम कुरुमरई माना जाता है। इनका जन्म शार्वरी नाम संवत्सर माघ शुक्ला ५ ईमापूर्व १०८ (बी० सी०) में हुआ था। इन्होंने ११ वर्ष की अल्पायु में ही श्रमण दीक्षा ली तथा ३३ वर्ष तक मुनिपद पर रहकर जान और चारित्र की सतत् साधना की। ४४ वर्ष की आयु ( ईसा पूर्व ६४ ) चतुर्विध सघ ने इन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया । ५१ वर्ष १० माह और १५ दिन तक उन्होंने आचार्यपद को सुशोभित किया। इस तरह इन्होंने कुल ९५ वर्ष १० माह १५ दिनकी दीर्घायु पायी और ईसा पूर्व १२में समाविमरण पूर्वक मृत्यु पाकर स्वर्गारोहण किया।' १. समयसार : पुरोवाक् ( मुन्नुडि ) पृ० ३०४ : सं०-बलभद्र जैन, प्रकाशन कुन्दकुन्द भारती, दिल्ली १९७८ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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