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-२. २१]
चारित्रप्राभृतम् अथ सागारचारित्राचारं निरूपयन्ति श्रीकुन्दकुन्दाचार्याःदसण वय सामाइय पोसह सचित्त रायभत्ते य । बंभारंभ परिग्गह अणुमण उद्दिट्ठ देसविरदो य ॥२१॥ दर्शनं व्रतं सामायिकं प्रोषधं सचित्तं रात्रिभुक्तिश्च । ब्रह्मचर्य आरम्भः परिग्रहः अनुमतिः उद्दिष्टः देशविरतश्च ॥२१॥
अष्टौ मूलगुणाः । 'के ते ? वट फलानामभक्षणं १ पिप्पलफलवर्जनं २ 'प्लक्षो जटी पर्कटी स्यात्' तत्फलनिवारणं ३ उदुम्बरो जघनेफलामलयुः ‘गूलर' इति देश्यात् तत्फल-निषेधः ४ कठंजर कठुम्बर 'अजोर' इति देश्यात् तत्फलानामभक्षणं ५ मद्य-मांस-मधुनिषेध ६-७-८ इत्यष्टौ मूलगुणाः । अथवा
अब आगे श्री कुन्दकुन्दाचार्य सागार चारित्राचारका निरूपण करते हैं.. गाथार्थ-दर्शन १ व्रत २ सामायिक ३ प्रोषध ४ सचित्त त्याग ५ रात्रिभुक्तित्याग ६ ब्रह्मचर्य ७ आरम्भ त्याग ८ परिगृहत्याग ९ अनुमतित्याग १० उद्दिष्टत्याग ११ यह सब देशविरत अथवा सागार चारित्राचार हैं ।। २१ ॥
विशेषार्थ-अप्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम की हीनाः धिकतासे देशविरत अथवा सागार चारित्राचारके दर्शन आदि ग्यारह भेद हैं । इन्हीं को श्रावककी ग्यारह प्रतिमाएं कहते हैं । सामान्यरूपसे दर्शन प्रतिमा-धारी श्रावकको आठ मूल-गुण धारण करने पड़ते हैं, सात व्यसनोंका त्याग करना होता है और सम्यग्दर्शन की भले प्रकार रक्षा करनी होती है । आठ मूल गुण कौन हैं ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए संस्कृत टीकाकार ने दो मतोंका उल्लेख किया है प्रथम मतके अनुसार बड़, पीपल, पाकर, ऊमर और अंजीर इन पाँच फलोंका तथा मद्य, मांस और मधु इन तीन मकारोंका त्याग करना आठ मूलगुण हैं। और द्वितीय मलके अनुसार मद्यपानका त्याग १ मांसत्याग २ मधुत्याग ३ रात्रिभोजनत्याग ४ पञ्चफलोत्याग ५ पञ्चपरमेष्ठी की नुति-देवदर्शन ६ जोवदया ७ और पानी छानना ८; ये आठ मूल गुण बतलाये हैं। सात व्यसनोंका उल्लेख करते हुए लिखा है
१. ते० के० म०। . २. बटफल नामफलं क० ।
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