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________________ षट्प्राभृते " [२. २०सर्वकर्मक्षयादनन्तरं मोक्षं प्राप्नुवन्तीत्यर्थः । कथंभूतां संख्येयगुणामसंख्येयगुणां च निर्जरां ( सासारिमेरु मित्ताणं ) सर्षपमेरुमात्राम् । सम्यक्त्वनिर्जरायाः सकाशात चारित्रनिर्जरा बहुतरेति भावः । णं इति वाक्यालंकारे ॥ १९॥ दुविहं संजमचरणं सायारं तह हवे णिरायारं । सायारं सग्गंथे परिग्गहा-रहिय खलु णिरायारं ॥२०॥ . द्विविधं संयमचरणं सागारं तथा भवेत् निरागारम् । .. सागार सग्रन्थे परिग्रहाद्रहिते निरागारम् ॥ २०॥ ( दुविहं संजमचरणं ) द्विविधं संयमचरणं द्विप्रकारश्चारित्राचारः । को तो द्वौ प्रकारो ? ( सायारं तह हवे निरायारं) सागारं तथा भन्निरागारं । सागारं कुत्र भवति ? ( सागारं सग्गंथे ) सागार चारित्र सग्रन्थे गृहस्थे भवति । तर्हि निरागारं चारित्रं कस्मिन् भवति ? ( परिग्गहारहिय खलु निरायारं ) परिग्रहाद्रहित निग्रन्थे निरम्बरे निरागारं चारित्र वेदितव्यमित्यर्थः । उपशान्त मोह, क्षपकश्रेणी वाले, क्षीणमोह और जिन;, इसप्रकार अनेक भेद हैं। इन सब स्थानों में उत्तरोत्तर असंख्यात गणी निर्जरा होती है। इस निर्जराके प्रभावसे योगीश्वर समस्त कर्मोका क्षय कर दुःखोंका क्षय करते हैं अर्थात् मोक्ष प्राप्त करते हैं। संख्यातगुणो और असंख्यात गुणी निर्जरा का अनुपात बतलाते हुए कहा है कि संख्यात गुणी निर्जरा सरसों के बराबर है और असंख्यात गुणी निर्जग मेरुके बराबर है अर्थात् सम्यग्दर्शनके प्रभाव से होने वाली निर्जराकी अपेक्षा चारित्रसे होने वाली निर्जरा बहुत है । गाथामें आया हुआ 'ण' शब्द वाक्यालंकार में प्रयुक्त हुआ है ॥ १९॥ ___ गाथार्थ-चारित्राचार के दो भेद हैं सागार और निरागार । सागार चारित्राचार परिग्रह-सहित गृहस्थ के होता है और निरागार चारित्राचार परिग्रह-रहित मुनिके होता है ॥ २० ॥ विशेषार्थ-हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांच पापोंसे विरक्ति होनेको संयम कहते हैं। यह विरक्ति एक देश और सर्वदेशके भेदसे दो प्रकार की होती है। एक देश विरक्तिसे विकल संयम प्रकट होता है और सर्व-देश विरक्तिसे सकल संयम। विकल संयम परिग्रहके धारक गृहस्थके होता है और सकल संयम परिग्रहके त्यागी मुनि के होता है ॥ २०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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