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________________ उ. शरीर में धातुराज के रुप में रहे वीर्य की रक्षा केवल अंगुळे से ही हो सकती है। साधना हेतु वीर्य रक्षा अति आवश्यक है, क्योंकि वीर्यवान् साधक ही साधना की सिद्धि कर सकता है। इसलिए वीर्यरक्षक के रुप में अंगुठे की ही पूजा की जाती है ताकि वीर्य के दुरुपयोग व स्खलन दोष से बच सकें प्र.311 अंगूठे की पूजा करते समय मन में क्या भावना भानी चाहिए ? उ. हे देवाधिदेव जिनेश्वर परमात्मा ! आप श्री ने अपने वीर्य को भोग मार्ग से हटाकर योग मार्ग में प्रवाहित किया उसी प्रकार मैं भी अपनी वीर्य शक्ति को भोग मार्ग से हटाकर योग मार्ग की ओर प्रवाहित कर सकू, ऐसी शक्ति मुझे प्रदान करें। प्र.312 चरण किसके प्रतीक है ? उ. सेवा, साधुता और साधना के प्रतीक है । प्र.313 परमात्मा के कौनसे उपकारों की स्मृति में अंगुठे की पूजा की जाती है ? उ. परमात्मा ने केवलज्ञान प्राप्ति हेतु तथा केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् प्राणी मात्र के आत्म कल्याण हेतु जन-जन को प्रतिबोधित करने के लिए इन्हीं चरणों से विहरण (विचरण) किया था, अत: उन उपकारों की स्मृति में अंगुठे की पूजा की जाती है। प्र.314 परमात्मा के घुटनों की पूजा करते समय मन को किन भावों से भावित करना चाहिए ? उ. हे परम परमात्मा ! साधनाकाल में आप श्री ने घुटनों के बल खड़े होकर 中中中中中++++++++++中中中中中中+++++++++++++++++++++ 78 .. चतुर्थ पूजा त्रिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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