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उग्र ध्यान-साधना की और उसके फलस्वरुप केवलज्ञान को प्राप्त किया था । हे देवाधिदेव ! मुझे भी ऐसी शक्ति प्रदान करें ताकि मैं भी घुटनों
के बल खड़ा होकर आत्म साधना कर केवलज्ञान को प्राप्त करुं । प्र.315 हाथ की पूजा किस उद्देश्य से की जाती हैं ? . उ. परमात्मा ने दीक्षा से पूर्व बाह्य निर्धनता को वर्षीदान देकर समाप्त किया
था और केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् आंतरिक (भाव) दारिद्रता को देशना व दीक्षा देकर मिटाया था, उसी प्रकार मैं भी संयम ग्रहण करके भाव
दारिद्र को दूर कर सकू। प्र.316 कंधों की पूजा क्यों की जाती हैं ? उ. कंधे सामर्थ्य के प्रतीक है। परमात्मा में तीन लोक को उठाने की क्षमता
होने के बावजूद भी किसी चींटी तक को साधनाकाल में इधर से उधर नही करके, सभी प्रकार के परिषहों को समता भाव से सहते रहे। अपने सामर्थ्य का कभी भी अभिमान नहीं किया । शक्ति होने पर भी अभिमान
हमारे अंदर प्रवेश न करे, इस हेतू से कंधों की पूजा की जाती है । प्र.317 मस्तक की पूजा किस प्रयोजन से की जाती है ? उ. जिनेश्वर परमात्मा अष्ट कर्मों का क्षय करके लोक के अग्रभाग अर्थात्
सिद्धशिला पर विराजित हुए हैं, उसी लोकाग्र सिद्धावस्था की प्राप्ति हेतु
मस्तक की पूजा की जाती है। प्र.318 परमात्मा के मस्तक पर तिलक करते समय मन में क्या चिन्तन
- करना चाहिए ? उ. शरीर में विद्यमान सात चक्रों में से सर्वश्रेष्ठ सहस्रार चक्र है, जो कि
मस्तक (सिर) में स्थित होता है। वहीं से सम्पूर्ण शरीर का तंत्र संचालित * +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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