________________
'पूज्यों में उपकार भाव का अभाव होने पर भी पूजक का उपकार होता है, जैसे मंत्रादि का स्मरण करने से मंत्र विद्या आदि को लाभ नही होता है, फिर भी साधक को इष्ट सिद्धि होती है, अग्नि आदि के सेवन से अग्नि को लाभ नही होता फिर भी सेवन करने वाले को शीत विनाश का लाभ होता है, वैसे ही जिनेश्वर की पूजा से जिनेश्वर परमात्मा को लाभ नही होता, फिर भी पूजक को पूजा करने से पूण्य उपार्जन आदि का
लाभ अवश्य होता है। प्र.308 जिन पूजा से क्या लाभ होता है ?
'उत्तम गुण बहुमाणो, पयमुत्तम सत मज्झया रम्मि । उत्तम धम्म प सिद्धि, पूयाए जिण वरिं दाणं ॥' षो. प्र. गाथा 48 पूजा करने से उत्तम गुणों वाले जिनेश्वर परमात्मा के प्रति बहुमान भाव उत्पन्न होते है । इह लोक में पुण्य कर्म के बंधन से भौतिक सम्पदा की प्राप्ति होती है और आध्यात्मिक दृष्टि से चारित्र धर्म की प्राप्ति होती है। पर लोक में आध्यात्मिक दृष्टि से तीर्थंकर, गणधर आदि पद की प्राप्ति होती है। भाव विशुद्ध होते है, सम्यग्दर्शनादि गुणों की प्राप्ति होती
1.309 परमात्मा के कितने अंगों की पूजा की जाती हैं ? उ.- नव अंगों की - 1. अंगुठा 2. घुटना 3. हाथ 4. कंधा 5. मस्तक 6.
ललाट (भाल) 7. कंठ 8. हृदय 9. नाभि । 4.310 चरण की पूजा में अंगूठे की ही पूजा क्यों, अन्य उपांग (अंगुलियों)
की क्यों नहीं ? +++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
+++++++++++++++++++++++++++
77
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org