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________________ उ. 'अग्र पूजा' को। प्र.253 षोडशक प्रकरण में अग्र पूजा को किस नाम से उद्बोधित किया और क्यों ? 'सर्वमंगला' नाम से उद्बोधित (उद्भाषित) किया है क्योंकि यह पूजा सर्व मंगलकारिणी होती है। प्र.254 अग्र पूजा को अभ्युदयकारणी क्यों कहा जाता हैं ? उ. यह पूजा पूजक के जीवन में आने वाले कष्टों का नाश करती है, इष्ट फल प्रदान करती हैं और इहलोक एवं परलोक के सुखों को प्रदान करने में सहायक होती है इसलिए इसे अभ्युदयकारणी कहते है। प्र.255 भाव पूजा किसे कहते हैं ? उ. जिनेश्वर परमात्मा के अद्वितीय, अलौकिक, यथार्थ गुणों से परिपूर्ण एवं संवेग जनक स्तुति, स्तवन द्वारा परमात्म-गुणों का स्तवन, कीर्तन आदि करना, भाव पूजा कहलाता है । जिनेश्वर परमात्मा की आज्ञा का पालन करना भी भाव पूजा है। प्र.256 भाव पूजा के प्रकारों का नामोल्लेख किजिए । उ. दो प्रकार- 1. प्रशस्त भाव पूजा 2. शुद्ध भाव पूजा । प्र.257 प्रशस्त भाव पूजा किसे कहते है ? उ. गुणवान, चरित्रवान् व्यक्ति के प्रति आत्मभावों से जुडना, प्रशस्त भाव पूजा प्र.258 प्रशस्त राग पुण्य बन्ध का कारण है, फिर भी यह प्रशस्त भाव आवश्यक क्यों ? उ. यद्यपि प्रशस्त राग पुण्य बंध का कारण है। फिर भी प्रकट हुए आत्म ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 64 ___चतुर्थ पूजा त्रिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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