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________________ ___4. ललीत विस्तरानुसार पूजा यानि 'द्रव्य भावसङ्कोच' । प्र.239 'द्रव्य संकोच' से क्या तात्पर्य है ? उ. श्री हरिभद्र सूरि म. के अनुसार 'कर-शिरः पादादि सन्यासो द्रव्य संकोचः' अर्थात् हाथ-पैर-दृष्टि-वाणी आदि के सम्यक् नियमन को द्रव्य संकोच कहते है। प्र.240 भाव संकोच से क्या तात्पर्य है ? उ. 'भावसंकोचस्तु विशुद्धस्य मनसो वियोग इति' अर्थात् जहाँ-तहाँ, जाने अनजाने स्थापित मन के आरोपित भाव को, उन समस्त स्थानों तथा पदार्थों में से खींच कर विशुद्ध मन को क्रिया (जिनेश्वर परमात्मा) में स्थापित (जोड़ना) करना, भाव संकोच कहलाता है। अर्थात् मन में नम्रता, लघुता, विनय, भक्ति, आदर, सम्मान इत्यादि भावों के साथ आज्ञा अथवा शरण स्वीकार करना, भावसंकोच है। प्र.241 पूजा त्रिक के नाम बताइये ? उ. 1. अंग पूजा 2. अग्र पूजा 3. भाव पूजा । प्र.242 पूजा के मुख्यतः कितने भेद है ? उ. दो भेद है - 1. द्रव्य पूजा 2. भाव पूजा । प्र.243 द्रव्य पूजा किसे कहते है ? उ. पुष्पादि पुद्गल द्रव्य से आराध्य देव की प्रतिमा आदि की पूजा करना, द्रव्य पूजा है। प्र.244 द्रव्य पूजा के कितने भेद है ? उ. दो भेद है - 1. अंग पूजा 2. अग्र पूजा । प्र.245 अंग पूजा किसे कहते है ? ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 62 चतुर्थ पूजा त्रिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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