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________________ चतुर्थ पूजा त्रिक प्र. 237 'पूजा' शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई ? उ. संस्कृत भाषानुसार पूजा शब्द की व्युत्पत्ति 'पूज्' धातु से हुई है। 'गुरोश्च हल' सूत्र के द्वारा दीर्घ होने से 'पूजा' शब्द बना । पूजा यानि पुष्पादि के द्वारा अर्चना करना, गन्ध, माला, वस्त्र, पात्र, अन्न और पानादि के द्वारा सत्कार करना, स्तवादि के द्वारा सपर्या करना, पुष्प, फल, आहार तथा वस्त्रादि के द्वारा उपचार करना । भाषा - विज्ञान के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के अनुसार पूजा शब्द 'पूंगे' द्राविड़ धातु से बना है। पू यानि 'पुष्प' और गे यानि 'करना' । पूगे यानि 'पुष्पकर्म' अर्थात् फूलों को चढ़ाना । जार्ल कार्पेण्टियर के अनुसार 'पूजा' शब्द 'पुसु' या 'पुचु' द्राविड़ धातु से बना है जिसका अर्थ है चुपड़ना, अर्थात् चंदन या सिंदूर से पोतना अथवा रुधिर से रंगना । प्र. 238 'पूजा' से क्या तात्पर्य है ? उ. 1. पूजा - पू यानि मांजना, देह के साथ-साथ राग द्वेष से मलिन हुई आत्मा को मांजना, पूजा है । 2. पू यानि फटकना, फटकने से धान के छिलके धान से अलग हो जाते हैं, उसी प्रकार परमात्मा-पूजा द्वारा आत्मा को देह से अलग (मुक्त) करना। शुद्धात्मा की प्राप्ति करना, पूजा कहलाता है । 3. पूजा अर्थात् समर्पण । मन, वचन व काया से परमात्मा को पूर्णतः समर्पित हो जाना । चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 61 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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