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________________ पञ्च - पांच, अंग - अवयव, प्रणिपात - प्रणाम, नमस्कार । चैत्यवंदन करते समय शरीर के पांच अंगों (दो हाथ, दोनों घुटने और मस्तक) को भुमि से स्पर्श करवाते हुए खमासमणा देना, पंचांग प्रणिपात कहलाता है। प्र.229 पंचांग प्रणिपात का रुढ नाम क्या है ? उ. 'खमासमणा' पंचांग प्रणिपात का रुढ नाम है। प्र.230 प्रणाम से कौन से आभ्यन्तर तप की आराधना होती है ? उ. प्रणाम से विनय नामक आभ्यन्तर तप की आराधना होती है । प्र.231 परमात्मा को प्रणाम करने से क्या लाभ होता है ? उ. "इक्को वि. नमुक्कारो.........तारेइ नरं वा नारिं वा" अर्थात् परमात्मा को शुभ व शुद्ध भाव से किया गया एक ही प्रणाम हजारों-लाखों भवों से मुक्त करने वाला, करोडों भवों के संचित कर्मों की निर्जरा करने वाला, साथ ही नर व नारी को भवसागर रुपी नौका से पार कराने वाला होता है। प्र.232 शास्त्रों में नमस्कार (प्रणाम) के कितने प्रकार बताये है ? उ. ... तीन प्रकार - 1. इच्छायोग नमस्कार 2. शास्त्रयोग नमस्कार 3. सामर्थ्य - योग नमस्कार । प्र.233 इच्छायोग नमस्कार किसे कहते है ? उं. 'कर्तुमिच्छोः श्रुतार्थस्य, ज्ञानिनोऽपि प्रमादतः । विकलो धर्म योगो यः स इच्छा योग उच्चते ॥ अर्थात् नमस्कार आदि, धर्मयोग करने की उत्कृष्ट इच्छा (भावना) हो और शास्त्र ज्ञान भी हो, किन्तु प्रमादवश मन विचलित हो जाए, बोलने में त्रुटि हो जाए व काया से उचित मुद्रा आदि न कर पायें ऐसा कृत नमस्कार ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 59 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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