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________________ निर्दोष आहार-पानी (सुपात्र ‘दान) वहोराना, उनके संयमी जीवन की साधना में उपयोगी वस्तुएँ - वस्त्र, पात्र, वसति, औषधि, पुस्तकें आदि उपलब्ध करवाना । साधर्मिक बन्धु की भक्ति पूर्वक सहायता करना, तीर्थ यात्रा संघ निकालना, पूजन-महापूजन, प्रतिष्ठा आदि अनेक विध धर्मानुष्ठान करते हुए शासन प्रभावक कार्य करना । प्र.1461 शील धर्म से क्या तात्पर्य है ? उ. शील धर्म में सम्यक्त्व के 67 व्यवहार, अहिंसादि व्रत, ईयासमिति आदि पंच समिति एवं तीन गुप्ति इत्यादि आचार अन्तर्भूत होते है । सम्यक्त्व मूल में गृहस्थ के बारह व्रत व यति के दस धर्म का मोटे तौर पर समावेश होता है। प्र.1462 श्रावक धर्म किसे कहते है ? उ. विशुद्ध परिणामवाला धर्म जो अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत से एवं श्रावक प्रतिमा सम्बन्धित क्रिया से साध्य होता है, उसे श्रावक धर्म कहते . प्र.1463 अणुव्रत किसे कहते है नाम बताइये ? . उ. ऐसा छोटा व्रत जिसमें हिंसादि पापों का स्थुलता से त्याग करने की प्रतिज्ञा की जाती है, उसे अणुव्रत कहते है । अणुव्रत पांच होते है - 1. स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत 2. स्थूल मृषावाद विरमण व्रत 3. स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत 4. स्थूल मैथुन विरमण व्रत 5. स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत । प्र.1464 शिक्षा व्रत के नाम बताइये । उ. शिक्षा व्रत चार होते है। जिनका जीवन पर्यन्त बार-बार अभ्यास किया 416 परिशिष्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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