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________________ सर्वोत्कृष्ट बाह्य फल है जो मात्र तीर्थंकर परमात्मा को ही मिलते है। पांच महाव्रत, हेतु धर्म है और क्षमादि दस प्रकार का यति धर्म, फल धर्म है, क्योंकि क्षमादि साध्य है और पांच महाव्रत इसका साधन (हेतु) है। पांच महाव्रत और क्षमादि गुण अरिहंत परमात्मा में सर्वोत्कृष्ट होता है। प्र.1458 भग' शब्द का 'समग्र धर्म' अर्थ से क्या तात्पर्य है ? अरिहंत परमात्मा - 1. सम्यग्दर्शन - सम्यग्ज्ञान - सम्यग्चारित्र रूप धर्म 2. दान-शील-तप-भावनामय धर्म 3. साश्रव और अनाश्रव धर्म 4. महायोग स्वरूप धर्म; इन चार प्रकार के विशिष्ट धर्म से सम्पन्न होने के कारण अरिहंत भगवंत 'समग्र धर्म' यानि श्रेष्ठ धर्मवान् कहलाते है। यह 'समग्र धर्म" शब्द का अर्थ है। प्र.1459 सम्यग्दर्शनादि तो गुण है, धर्म कैसे ? . उ. सम्यग्दर्शनादि तीनों ही मोक्ष के उपाय है, इस हेतु से ये तीनों धर्म है। सम्यग्दर्शन तत्त्वपरिणित स्वरूप होता है, सम्यग्ज्ञान तत्त्व प्रकाश स्वरूप होता है, और सम्यग्चारित्र तत्त्व संवेदनात्मक है जिसमें चरण सितरि के 70 मूल गुण एवं करण सितरि के 70 उतर गुणों का समावेश होता है। प्र.1460 दान धर्म के अन्तर्गत क्या-क्या आते है उल्लेख कीजिए ? उ. दान धर्म के अन्तर्गत अभय दान, ज्ञान दान व धर्मोपग्रह दान आते है। 1. अभय दान - सृष्टि के समस्त प्राणियों पर दया, करूणा, अनुकंपा - आदि करना । 2. ज्ञानदान - धर्मानुरागी को जिनोक्त तत्त्वों का सम्यग्ज्ञान करवाना, धर्म के प्रचार हेतु साधनों को उपलब्ध करवाना । .. 3. धर्मोपग्रह दान - धर्म की साधना-आराधना हेतु उपकरण आदि सामग्री उपलब्ध करवाना । जैसे - पंच महाव्रतधारी साधु भगवंतों को ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 415 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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