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अर्थात् काष्ठ कर्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म और अक्ष निक्षेप आदि में 'यह वह
है' इस प्रकार स्थापित करने को स्थापना कहते है
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राजवार्तिक 1/5/2/28/18
आकृतियों में किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष नाम की स्थापना करना, स्थापना निक्षेप कहलाते है ।
1. काष्टकर्म - काष्ठ में इन्द्र, स्कन्द आदि किसी की कल्पित आकृत्ति
स्थापित करना ।
2. चित्रकर्म - चित्र में लक्ष्मी, सरस्वती आदि किसी आकृति की स्थापना करना ।
3. पुस्तकर्म- कपडे की पुतली या ताडपत्र आदि पर लिखित पुस्तकं व चित्रादि ।
4. लेप्य कर्म - मिट्टी आदि के लेप से निर्मित प्रतिमा या दीवार पर सोंधिया, पहरेदार आदि के चित्र ।
5. ग्रंथिम कर्म - वस्त्र, रस्सी या धागे आदि में माला, वृषभ की कोई आकृति बनाना ।
6. वेष्टिम कर्म - फूलों से गूंथकर हाथी आदि कोई आकृति बनाना ।
7. पूरिम पीतल, चांदी, चूना, प्लास्टर, आदि की प्रतिमा, जो भीतर
से पोली होती है ।
8. संघातिम - वस्त्र के छोटे- छोटे रंग बिरंगे टुकडों को जोडकर मनुष्य आदि की बनाई हुई आकृति ।
9. अक्ष कर्म - पासों या मोहरों से बनी आकृति ।
10. वराटक - कौडी या सीप, शंख आदि से बनी आकृति ।
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पन्द्रहवाँ जिन द्वार
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