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________________ 264 अर्थात् काष्ठ कर्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म और अक्ष निक्षेप आदि में 'यह वह है' इस प्रकार स्थापित करने को स्थापना कहते है 1 राजवार्तिक 1/5/2/28/18 आकृतियों में किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष नाम की स्थापना करना, स्थापना निक्षेप कहलाते है । 1. काष्टकर्म - काष्ठ में इन्द्र, स्कन्द आदि किसी की कल्पित आकृत्ति स्थापित करना । 2. चित्रकर्म - चित्र में लक्ष्मी, सरस्वती आदि किसी आकृति की स्थापना करना । 3. पुस्तकर्म- कपडे की पुतली या ताडपत्र आदि पर लिखित पुस्तकं व चित्रादि । 4. लेप्य कर्म - मिट्टी आदि के लेप से निर्मित प्रतिमा या दीवार पर सोंधिया, पहरेदार आदि के चित्र । 5. ग्रंथिम कर्म - वस्त्र, रस्सी या धागे आदि में माला, वृषभ की कोई आकृति बनाना । 6. वेष्टिम कर्म - फूलों से गूंथकर हाथी आदि कोई आकृति बनाना । 7. पूरिम पीतल, चांदी, चूना, प्लास्टर, आदि की प्रतिमा, जो भीतर से पोली होती है । 8. संघातिम - वस्त्र के छोटे- छोटे रंग बिरंगे टुकडों को जोडकर मनुष्य आदि की बनाई हुई आकृति । 9. अक्ष कर्म - पासों या मोहरों से बनी आकृति । 10. वराटक - कौडी या सीप, शंख आदि से बनी आकृति । Jain Education International - For Personal & Private Use Only पन्द्रहवाँ जिन द्वार www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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