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________________ से सम्पन्न है ? इस जिज्ञासा के समाधान हेतु दूसरे स्थान पर 'ओघ हेतु संपदा'का उपन्यास किया । दूसरी जिज्ञासा के शांत होने के पश्चात् जेहन में फिर प्रश्न उठता है कि ऐसे कौनसे विशेष गुणों के धनी है जिसके कारण वे हमारे आराध्य देव है। इस जिज्ञासा की शान्ति हेतु तीसरे स्थान पर 'विशेष हेतु' संपदा का उपन्यास किया है । परमात्मा के गुणों की जानकारी प्राप्त होने पर मन में सहज ही प्रश्न उठता है कि परमात्मा के इन विशिष्ट गुणों का हमारे जीवन में क्या उपयोग है ? सामान्य उपयोग की जानकारी हेतु चौथे क्रम पर 'सामान्य उपयोग' नामक संपदा का उपन्यास किया I निपूण अन्वेषक स्तुति प्रवृत्ति करने से पूर्व मन में यह चिन्तन अवश्य करते है कि परमात्मा (स्तोतव्य) के सामान्य उपयोग लोक हितार्थ में कैसे उपयोगी बनते है। इस जिज्ञासा के तृप्त्यर्थ पांचवें स्थान पर 'तद् उपयोग हेतु संपदा' का उपन्यास किया है । स्तोतव्य के सामान्य उपयोग ज्ञात होने के पश्चात् विशेषोपयोग जानने की तीव्र भावना मन में तरंगित होती है । इस विशेषोपयोग से अवगत कराने हेतु छट्टे क्रमांक पर 'विशेषोपयोग संपदा' का उपन्यास किया गया है। निश्चय प्रिय विचारकों के मन मानस में अब अपने आराध्य (स्तोतव्य) देव के अलौकिक, अद्वितीय स्वरुप को जानने की तीव्र उत्कंठा जाग्रत होती है । ऐसी अद्वितीय स्वरुप संपदा का उल्लेख करने I हेतु, सातवें स्थान पर 'स्वरुप संपदा' का उपन्यास किया है । अब प्रेक्षावान् के मन में फिर जिज्ञासा होती है कि हमारे स्तोतव्य प्रत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 229 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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