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उ.
अन्य नाम 'अभय (जितभय स्वरुप ) ' संपदा है ।
प्र. 878 कौन से पदों वाली संपदा मोक्ष संपदा कहलाती है ?
उ. 'सव्वन्नूणं सव्वदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत मक्खय मव्वाबाहूपुरावित्ति सिद्धि गइ - नाम धेयं ठाणं संपत्ताणं और नमो जिणाणं जिअ भयाणं' आदि तीन पदों वाली नौवीं मोक्ष संपदा है ।
प्र. 879 मोक्ष संपदा को अभय संपदा क्यों कहते है ?
उ.
तीर्थंकर परमात्मा ने संसारवस्था में वीतराग होने के बाद जो केवलज्ञानकेवलदर्शन यानि सर्वज्ञता - सर्वदर्शिता नामक दो प्रधान आत्म गुण प्राप्त किये वे मोक्ष में भी अक्षय रहते है । ऐसे अक्षय प्रधान गुण धारक को ही शिव - अचल - अरोग आदि स्वरुप वाला मोक्ष फल प्राप्त होता है । प्रधान गुण सम्पन्न को ही प्रधान फल स्वरुप मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष एक ऐसा स्थान है जहाँ किसी प्रकार का भय नही है इसलिए इस मोक्ष संपदा को अभय ( जितभय स्वरुप) संपदा कहते है ।
प्र. 880 शक्रस्तव की नौ संपदाओं का इस प्रकार से उपन्यास (क्रम ) क्यों
उ.
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किया गया ?
चिंतनशील प्राणी सदैव स्तुति करने से पूर्व अपने स्तोतव्य (आराध्य ) को स्तुति (आराधना) का लक्ष्य (उद्देश्य) बनाकर ही आराधना प्रारंभ करते है । स्तोतव्य का आलंबन लेकर ही आत्मदृष्टा स्तुति की प्रवृत्ति प्रारंभ करते है । अत: आराध्य (स्तोतव्य) आराधना (स्तुति) के मुख्य अंग है। इसलिए मुख्य अंग की अपेक्षा से 'स्तोतव्य संपदा' को प्रथम स्थान दिया गया।
स्तोतव्य के ज्ञात होने के पश्चात् आराधक (साधक) के मन में प्रश्न उठता है कि उसका आराध्य देव कौन से साधारण व असाधारण गुणों
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शक्रस्तव की संपदा
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