SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उ. धर्मदान, धर्मदेशना, धर्मनायकता, धर्मसारथिपन एवं धर्म चक्रवर्तित्व नामक स्तोतव्य (तीर्थंकर परमात्मा) के ये पांच विशिष्ट गुण भव्यात्माओं के लिए विशेष उपयोगी है, इसी कारण से यह स्तोतव्य संपदा की 'सविशेषोपयोग' संपदा कहलाती है । प्र.872 सातवीं संपदा का क्या नाम है और इस संपदा में कुल कितने पद है नाम लिखे ? उ. सातवीं 'स्वरुप संपदा' के दो पद - ‘अप्पडिहय वरनाण - दंसण धराणं और विअट्ट - छउमाणं' है। प्र.873 'स्वरुप संपदा' में कौनसी आत्मा को अरिहंत परमात्मा कहते है ? उ. अप्रतिहत ज्ञान - दर्शन गुणों के धारक, छद्मस्थता से रहित (मुक्त) आत्मा को अरिहंत परमात्मा कहते है । प्र.874 आठवीं 'निज सम फलद' संपदा के पदों के नाम लिखें ? उ.. 'जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं और मुत्ताणं ..मोअगाणं' आठवीं संपदा के पदों के नाम है। 4.875 'निज सम फलद' संपदा का दूसरा नाम क्या है ? उं... 'निज सम फलद' संपदा का दूसरा नाम 'आत्म तुल्य पर फल कर्तृत्व' 4876 निज सम फलद नामक आठवीं संपदा किसकी द्योतक (सुचक) है ? 3. हमारे स्तोतव्य अरिहंत परमात्मा स्वयं जिन बने, संसार सागर से तरे, ___ मुक्त, बुद्ध बने, सिद्धत्व को प्राप्त किया, वैसे ही दूसरों को बनाने में समर्थ है, यह आठवीं संपदा इसी की द्योतक (सुचक) है । 4877 मोक्ष संपदा का अन्य नाम क्या है ? ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ अत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 227 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy