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प्र. 867 उपयोग हेतु सम्पदा से क्या तात्पर्य है ?
उ.
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‘लोगुत्तमाणं........ लोगपज्जोअगराणं' नामक पांच पदों वाली स्तोतव्य संपदा की सामान्य उपयोग रुप यह चौथी संपदा है । तीर्थंकर परमात्मा में लोकोत्तमता, लोक हितकारिता, लोक प्रदीपकता एवं लोक प्रद्योतकता नामक जो गुण है, वे पर हितार्थ है, इसलिए तीर्थंकर परमात्मा लोकोपयोगी होने के कारण स्तोतव्य है । ये अरिहंत परमात्मा के सामान्य उपयोग है। प्र. 868 कितने व कौन से पदों वाली पांचवीं संपदा है, नाम लिखें ? उ. 'अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं और बोहि-दयाणं नामक पांच पदों वाली 'तद् हेतु' नामक पांचवीं सम्पदा है । प्र. 869 पांचवीं सम्पदा को सामान्योपयोग सम्पदा की 'तहेतु' संपदा क्यों कहते है ?
लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाणं और लोगपज्जो अगराणं'। नामक पांच पदों का समावेश किया गया हैं ।
उ.
अभयदान, चक्षुदान, मार्गदान, शरणदान एवं बोधिदान परमात्मा की लोकोपयोगिता (लोक हित ) में हेतु भूत ( कारण / निमित्त ) होने से इस सम्पदा को सामान्योपयोग सम्पदा की 'तद् हेतु' संपदा कहते है । प्र.870 छट्ठी संपदा और संपदा के कुल पदों के नाम लिखिए ? 'सविशेषोपयोग' नामक छट्ठी संपदा के धम्मदयाणं, धम्म देसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं और धम्मवर - चाउरंत - चक्कवट्टीणं नामक कुल पांच पद है ।
उ.
प्र. 871 छट्ठी संपदा स्तोतव्य संपदा की 'सविशेषोपयोग' संपदा क्यों
कहलाती है ?
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शक्रस्तव की संपदा
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