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________________ दूसरा अभिगम द्वार प्र.572 अभिगम से क्या तात्पर्य है ? उ. अभिगम यानि विनय । परमात्मा का विनय करना, बहुमान भाव प्रकट करना, अभिगम कहलाता है। प्र.573 पांच अभिगम कौन-कौन से है ? उ. 1. सचित्त का त्याग 2. अचित्त का अत्याग 3. मन की एकाग्रता (प्रणिधान) ___4. उत्तरासंग 5. अञ्जलि । प्र.574 सचित्त का त्याग' अभिगम से क्या तात्पर्य है ? उ. शरीर पर सचित्त द्रव्य जैसे - पुष्प, पुष्प हार आदि शरीर शोभा सम्बन्धित समस्त वस्तुओं का त्याग, स्वयं के भोग-उपभोग में आने वाली समस्त खाद्य सामग्री का त्याग करके जिन मंदिर में प्रवेश करना चाहिए । प्र.575 स्व उपयोगी वस्तु को भूलवश यदि मंदिर में ले गये हो, तो फिर - उस वस्तु का क्या करना चाहिए ? उ. स्व उपयोग न करके, उस वस्तु को या तो धूल (निर्जन स्थल) में विसर्जित - (परठ) कर देना चाहिए या फिर पूजारी को वह वस्तु सौंप देनी चाहिए। प्र.576 अचित्त का अत्याग' से क्या तात्पर्य है ? उ. अचित्त उपकरण (स्वर्णाभूषण आदि) शरीर से न उतारना । स्वच्छ व उत्तम :: वस्त्राभूषण धारण करके एवं अष्ट प्रकारी पूजन सामग्री लेकर जिन मंदिर में प्रवेश करना चाहिए। प्र.57 स्व उपयोगी अचित्त वस्तु ( दवाई, खाद्य सामग्री आदि) बाहर छोड़ने से पूर्व ही परमात्मा की दृष्टि उस पर पड़ जाए तो क्या वह वस्तु +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 155 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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