SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमारे उपयोगी होगी या नही और क्यों ? उ. वह वस्तु हमारे उपयोगी नही होगी । परमात्मा की दृष्टि स्व उपयोगी वस्तु पर नही पड़नी चाहिए। क्योंकि यह एक प्रकार से परमात्मा का लोकोत्तर विनय है। प्र.578 उत्तरासंग (खेस) अभिगम से क्या तात्पर्य है ? उ. स्वच्छ व अखंड उत्तरासंग धारण करना । पुरुष वर्ग को कंधे पर स्वच्छ. व अखंड रेशमी उत्तरासंग (खेस) धारण करके जिनमंदिर में प्रवेश करना चाहिए। प्र.579 मन की एकाग्रता अभिगम से क्या तात्पर्य है ? उ. मन को एकाग्र रखना अर्थात् चित्त को परिक्षार्थी की भाँति अन्य इधर उधर की समस्त बाह्य चेष्टाओं से मुक्त करके दृष्टि को मात्र परमात्मा की प्रतिमा में ही स्थिर करना। परमात्म-स्वरुप का चिंतन करते हुए जिन मंदिर में प्रवेश करना। प्र.580 'अञ्जलि' अभिगम से क्या तात्पर्य है ? .. उ. प्रभु दर्शन होते ही सिर झुकाकर और हाथ जोड़कर 'नमो जिणाणं' का उच्चारण करना । प्र.581 उपरोक्त कथित पांच अभिगम किसके लिए कहे गये है ? उ. उपरोक्त कथित पांच अभिगम अल्प ऋद्धि वाले श्रावकों के लिए कहे गये है। प्र.582 स्त्रियों के कितने व कौन से अभिगम होते है ? उ. स्त्रियों के तीन- सचित्त का त्याग, अचित्त का अत्याग और मन की एकाग्रता 156 दूसरा अभिगम द्वार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy