SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्र.6 उ. प्र. 7 उ. 2 रखा गया है। अरिहंत परमात्मा ही सम्यग्दृष्टि देते हैं, मोक्ष की राह बताते हैं, अतः बोधि दाता अरिहंत परमात्मा के संदर्भ में ही विवेचन होने के कारण उसे प्रथम स्थान दिया है । मंगलाचरण किसे कहते हैं ? मंगलाचरण अर्थात् मंगल + आचरण । मंगल - शुभ, क्षेम, प्रशस्त, शिव, पुण्य, पवित्र, प्रशस्त, कल्याण, पूत, भद्र एवम् सौख्य । मंगलाचरण का कथन आचरण - आचार, क्रिया, प्रवृत्ति । 'मंग्यते - अधिगम्यते हितमनेन इति मंगलम्' अर्थात् जिस प्रवृत्ति से आत्मा का हित / कल्याण होता है, उसे मंगलाचरण कहते हैं I दशवैकालिक टीका (हरिभद्रसूरिजी म. ) तिलोयपण्णति, धवला के अनुसार जो पाप रूपी मल को गलाता विनाश करता है, पुण्य - सुख को प्राप्त करवाता है और आत्मा को अमल विमल बनाता है, उसे मंगलाचरण कहते हैं । मंगल के भेद बताइये । ( मंगल के प्रकार ) सामान्य की अपेक्षा से एक प्रकार का । मुख्य और गौण से दो प्रकार का । पं. का/ता.वृ/1/5/9 द्रव्य और भाव से दो प्रकार का । . 1/1.1.1/39/3 सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र की अपेक्षा से तीन प्रकार । .1/1/1.1/39/3 -D Jain Education International - धवला - For Personal & Private Use Only - 1/1. 1.1/39/3 चैत्यवंदन भाष्य प्रथम क्यों www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy