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________________ 4 धर्म, सिद्ध, साधु और अरिहंतं के भेद से चार प्रकार । ध. 1/1/1.1/39/3 ज्ञान, दर्शन और तीत गुप्ति (मन, वचन व काया) के भेद से पांच प्रकार । नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से छ: प्रकार । ति.प. /1/18 धवला 1/1.1.1/10/4 जिनेन्द्र परमात्मा को नमस्कार हो इत्यादि रुप से अनेक प्रकार का होता है। धवला/1/1.1.1/39/3 प्र.8 द्रव्य मंगल किसे कहते हैं ? उ. संसार की प्राप्ति/उन्नति आदि के लिए जो क्रिया की जाती है, उसे द्रव्य मंगल कहते है। जैसे- पूर्ण कलश, सरसों, दही, गुड़, अक्षत, ध्वनि आदि । द्रव्य मंगल को लौकिक मंगल भी कहते हैं । प्र.9 द्रव्य मंगल को लौकिक मंगल क्यों कहते हैं ? . द्रव्य मंगल- सरसों, दही, गुड़ आदि संसार की सुख-सुविधाओं के विकास व विस्तार में सहायक होते हैं, इसलिए इसे (द्रव्य मंगल) लौकिक मंगल कहते है। लौकिक मंगल मात्र लोक की दृष्टि में मंगल ... है, ज्ञानी की दृष्टि में नहीं । प्र.10 लौकिक मंगल ज्ञानी की दृष्टि में मंगल क्यों नही है ? उ. लौकिक मंगल से आत्मा का किसी प्रकार से विकास, कल्याण नहीं होता है। मात्र यह संसार की वृद्धि, इच्छाओं और इन्द्रियों की अतृप्ति का कारण है। +++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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