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चैत्यवंदन भाष्य प्रथम क्यों प्र.1 चैत्यवंदन भाष्य के रचयिता कौन है ? उ. चैत्यवंदन भाष्य के रचयिता पू. आचार्य भगवंत श्री जगच्चन्द्रसूरिजी
म.सा. के पट्टधर शिष्य पू. आचार्य प्रवर श्री देवेन्द्रसूरिजी म.सा. है। प्र.2 'चैत्यवंदन' को प्राकृत भाषा में क्या कहते हैं ? उ. 'चेइयवंदण' कहते हैं । प्र.3 प्रस्तुत भाष्य का नाम 'चैत्यवंदन भाष्य' क्यों दिया गया है ? उ. प्रस्तुत भाष्य में परमात्मा को वंदन, पूजन आदि कैसे करते हैं, उन समस्त
विधियों का उल्लेख किया गया है, इसलिए इसका नाम 'चैत्यवंदन भाष्य' दिया गया है।
'भाष्य त्रयम्' में कौन से भाष्यों का समावेश किया गया है ? उ. भाष्य त्रयम् में 'चैत्यवंदन भाष्य, गुरूवंदन भाष्य और पच्चक्खाण भाष्य'
का समावेश किया गया है। प्र.5 . 'भाष्य त्रयम्' में चैत्यवंदन भाष्य को प्रथम स्थान क्यों दिया गया
है? तीर्थंकर परमात्मा द्वारा प्ररूपित तत्त्वों में दो त्रिक-तत्त्वत्रयी (सुदेव, सुगुरू
और सुधर्म) और रत्नत्रयी (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र) महत्वपूर्ण हैं। इन दोनों त्रयी की अपेक्षा से चैत्यवंदन भाष्य को प्रथम स्थान दिया गया है । तत्त्वत्रयी में जिनेश्वर परमात्मा (सुदेव) प्रथम होने से प्रथम स्थान पर चैत्यवंदन भाष्य रखा गया है। चैत्यवंदन भाष्य में जिन प्रतिमा, जिन मंदिर आदि के संदर्भ में विवेचन किया गया है । रत्नत्रयी में 'सम्यग्दर्शन' प्रथम स्थान पर होने से इसे प्रथम स्थान पर
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चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी .
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