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संयम के कारण भूत पुरुषत्व, संहनन आदि प्रशस्त निदान मुमुक्षु मुनि नही करते है क्योंकि पुरुषत्व आदि पर्याय भी भव ही है और भव संसार है । प्र.559 तब मुमुक्षु को परमात्मा समक्ष कैसी प्रार्थना करनी चाहिए ? उ. मेरे दुःखों का नाश हो, मेरे कर्मों का नाश हो, मेरा समाधिमरण हो, मुझे रत्नत्रय रुप बोधि की प्राप्ति हो, ऐसी प्रार्थना परमात्मा के समक्ष करनी चाहिए। क्योंकि ये समस्त प्रार्थनाएँ (कामनाएँ) मोक्ष के कारण भूत प्रशस्त निदान है ।
प्र.560 किन्हें नियाणा न करने पर भी अगले जन्म में निश्चय से पुरुषत्व आदि और संयम आदि की प्राप्ति होती है ?
उ. रत्नत्रय की आराधना करने वाले आराधक को अगले जन्म में निश्चय से पुरुषत्व आदि व संयमादि की प्राप्ति होती है ।
प्र. 561 अन्य अपेक्षा से प्रणिधान त्रिक कौनसे है ?
उ. 1. मन प्रणिधान 2. वचन प्रणिधान 3. काय प्रणिधान ।
प्र. 562 प्रणिधान किसे कहते है ?
उ. मानसिक, वाचिक एवं कायिक अप्रशस्त व्यापार से निवृत्त होकर प्रशस्त व्यापार में प्रवृत्त होना, प्रणिधान कहलाता है । अर्थात् राग- द्वेष के अभाव
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से त्रियोग सह समाधिस्थ बनना, प्रणिधान है ।
उ.
प्र. 563 मन प्रणिधान किसे कहते है ?
उ. किसी भी धार्मिक अनुष्ठान (चैत्यवंदन आदि क्रिया विधि) में उस अनुष्ठान
(विधि) के अतिरिक्त अन्य कार्यों का चिन्तन न करना, आर्त- रौद्र ध्यान से सर्वथा दूर रहना और एकाग्रता पूर्वक चैत्यवंदन आदि धार्मिक
अनुष्ठान
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दशम प्रणिधान त्रिक
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