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________________ करना, मन प्रणिधान कहलाता है । प्र.564 वचन प्रणिधान किसे कहते है ? उ. पद, संपदा, गुरू, लघु अक्षर का पूरा ध्यान रखते हुए सूत्रों का उच्चारण करना, वचन प्रणिधान है । प्र.565 काय प्रणिधान से क्या तात्पर्य है ? उ. जिस मुद्रा में जो क्रिया कही गयी है, उसी मुद्रानुसार शरीराकृति बनाना, काय प्रणिधान है । प्र.566 प्रणिधान कर्ता में कौनसे गुणों का होना आवश्यक है ? उ. निम्न तीन गुणों का होना आवश्यक है - 1. प्रणिधान के प्रति बहुमान भाव रखना 2. विधितत्पर 3. उचित जीविकावृत्ति । प्र.567 सिद्धहेम शब्दानुशासन बृहद्वृत्ति में प्रणिधान के कितने भेद बताइये ? उ. चार भेद : 1. पदस्थ प्रणिधान 2. पिण्डस्थ प्रणिधान 3. रूपस्थ प्रणिधान । 4. रुपातीत प्रणिधान । पदस्थ प्रणिधान - 'अहं' शब्दस्थस्य - अर्हं आदि पद में निहित अरिहंत . का ध्यान 'पदस्थ प्रणिधान' है । पिण्डस्थ प्रणिधान पिण्डस्थ प्रणिधान है । रूपस्थ प्रणिधान - 'प्रतिमास्थस्य' अरिहंत की प्रतिमा का ध्यान 'रूपस्थ प्रणिधान' कहलाता है । चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 'शरीरस्थस्य' शरीर स्थित अरिहंत का ध्यान Jain Education International For Personal & Private Use Only 151 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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