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प्र.536 किन गुणों को लौकिक जीवन का सौन्दर्य और क्यों कहा गया है ? . उ. लोक विरुद्ध त्याग, गुरूजन पुजा और परार्थकरण (परोपकार) को लौकिक
जीवन का सौन्दर्य कहा है । ये तीनों ही गुण व्यवहार जगत में लोक हितकारी, लोकोपयोगी बनते है । परहितकारी होने के कारण इन्हें लौकिक
जीवन का सौन्दर्य कहा गया है। प्र.537 जयवीयराय सूत्र में प्रथम लोक विरुद्ध त्याग आदि लौकिक सौन्दर्य
की कामना तत्पश्चात् लोकोत्तर सौन्दर्य रुप शुभ गुरू का योग और
उनके वचनों की पालना, ऐसा क्रमिक क्यों कहा गया ? उ. लोक विरुद्ध त्यागादि लौकिक सौन्दर्य को प्राप्त करने के पश्चात् ही
लोकोत्तर धर्म अर्थात् जिनोक्त धर्म (सद्गुरू का योग, उनके वचनों की सेवा) को प्राप्त किया जा सकता है । लौकिक सौन्दर्य (लोक विरुद्ध का त्याग, गुरूजनों की पूजा) के पूर्व अथवा उसके अभाव में सदगुरू का योग भी ज्वरादि - दोष युक्त को पथ्य पौष्टिक आहार के लाभ के समान सदोष लाभ रुप होगा । इसलिए लोक विरुद्धादि के पश्चात् सदगुरू का योग कहा उसके पश्चात् तद्वचन की सेवना का कथन किया है । क्योंकि सद्गुरू का योग ही पर्याप्त नही होता, बल्कि उनके वचनों का सम्यक् रुप से पालन
करना भी अनिवार्य होता है। ... प्र.538 नियाणा (निदान) में याचना की जाती है और प्रणिधान में प्रार्थना
- की जाती है फिर प्रणिधान नियाणा कैसे नही है ? उ. एत्तो च्चिय ण णियाणं पणिहाणं बोहिपत्थणा सरिसं
भाव हेउ भावा, णेय इहरापवित्ती उ॥ पंचाशक प्रकरण गाथा 30
निदान में अशुभ परिणाम रुप संसार सुख की याचना की जाती है जबकि ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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