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उ. मर्त्यलोक में सारभूत दूसरे जीवों की भलाई का कार्य-परोपकार करना ।
स्वार्थ साधना तो क्षुद्र जन्तु भी करते है, किन्तु अन्यार्थ प्रवृत्ति करना,
परहितकर प्रवृत्ति करना, यह जीवन का सार एवं पुरुषार्थ का लक्षण है। प्र.532 सुहगुरूजोगो से कैसे गुरू के योग की कामना की जाती है ?
और क्यों ? उ. विशिष्ट चारित्रादि गुण सम्पन्न, पवित्र, शुभ आचार्य आदि गुरू, साधु,
साध्वी आदि धर्माचार्यों का संयोग मिले, ऐसे गुरू की कामना की जाती है। चारित्रहीन गुरू लाभ की अपेक्षा हानिकारक अधिक होते है । जैसेभुखे को जहर मिश्रित लड्डु मिलने के समान । चारित्रवान् सद्गुरू ही हमें
सम्यक् राह दिखाते है, इसलिए सद्गुरू की कामना की जाती है। प्र.533 तव्वयण सेवणा से क्या तात्पर्य है ? उ. सद्गुरूओं के उपदेश का पालन करना, उनके वचनानुसार आचरण का
सेवन करना । सद्गुरूओं के वचन सदैव हितकारी होते है, इसलिए जब तक मोक्ष की प्राप्ति न हो, तब तक अखण्ड रुप से सद्गुरू के वचनों का
पालन करना चाहिए। प्र.534 यहा अखण्ड शब्द से क्या तात्पर्य है ? . उ. अखण्ड का अर्थ कालापेक्षा से सतत, निरन्तर, न कि अमुक समय विशेष ।
प्रमाणापेक्षा से उनके प्रत्येक वचन का अक्षरतः पालन, न कि गुरू के कुछ
वचनों का पालन और कुछ का नही अर्थात् अंशत: पालन । प्र.535 आभवमखण्डा' से क्या तात्पर्य है ? उ. जब तक संसार में परिभ्रमण करना पड़े, तब तक मुझे उपरोक्त कथित इन
आठ वस्तुओं की प्राप्ति सम्पूर्ण रुप से हो । ofo of ofo of ofe ofo of of ofo of ofo of ofo ofo of ofo of ofe ofo of of ofo of ofo of of ofo of ofo of of ofo of of ofo of of ofo of of of of 142
दशम प्रणिधान त्रिक
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