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________________ प्र.530 योग बिन्दु ग्रन्थानुसार गुरूजनों की पूजा किस प्रकार से करनी चाहिए ? उ. 1. माता-पिता को त्रिकाल (सुबह, दोपहर, शाम) नमस्कार करना । साक्षात् नमस्कार के अभाव ( उनकी अनुपस्थिति) में भाव नमस्कार करना । 2. गुरूजनों के बाहर से पधारने पर बहुमान पूर्वक उनकी भक्ति करना । जैसे- खड़े होना, आसनादि प्रदान करना । 3. गुरूजनों के समक्ष उदण्डता का त्याग कर विनयपूर्वक उनसे अपेक्षाकृत नीचे आसन लगाकर बैठना । 4. अपवित्र स्थान पर गुरूजनों का नाम स्मरण न करना । 5. गुरूजनों का अवर्णवाद अर्थात् निंदा, पराभव आदि का श्रवण न करना । 6. शक्ति अनुसार उन्हें वस्त्र, भोजन, अलंकार आदि प्रदान करना । 7. उनके द्वारा परलोक हितकारी कार्य जैसे - देव पूजा, अतिथि भक्ति, अनुकंपा, दान आदि कार्य करवाना । 8. उनकी इच्छानुकूल प्रवृत्ति करना । 9. गुरूजनों की वस्तुओं जैसे - आसन, वस्त्र आदि का स्वव पर के • लिए उपयोग नहीं करना चाहिए । 10. माता - पिता की मृत्यु के पश्चात् उनकी धन दौलत का उपयोग धर्म कार्य करने में करना । 11. माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् मृत्यु सम्बन्धित देवपूजा आदि धार्मिक कार्य ससम्मान करवाना । प्र. 531 परत्थकरण ( परार्थकरण ) से क्या तात्पर्य है ? चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी . Jain Education International For Personal & Private Use Only 141 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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