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________________ प्र.523 इहलोक में इष्टफल की सिद्धि के लिए प्रार्थना करना क्या उचित है? उ. हाँ उचित है, क्योंकि इस जन्म में इष्ट प्रयोजन की प्राप्ति होने से चित्त में स्वस्थता टिकी रहती है जिससे वह व्यक्ति आत्म कल्याण के कार्यों में धर्म प्रवृत्ति कर सकता है इस आशय से इहलोक में इष्टफल की प्रार्थना करना अनुचित नहीं है। प्र.524 इष्टफल सिद्धि द्वारा परमात्मा से क्या प्रार्थना की जाती है ? उ. वर्तमान में चित्त की स्वस्थता बनी रहे और जीवन धर्म में प्रवृत हो, ऐसी अविरोधी इष्ट वस्तुओं की सिद्धि हेतु परमात्मा से प्रार्थना की जाती है । प्र.525 अविरोधी इष्ट वस्तुओं की कामना से क्या तात्पर्य है ? उ. धर्म की दृष्टि से जिसका विरोध न हो ऐसी वस्तुओं की कामना करना। जैसे - गरीब साधक, जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु धन की याचना करता है तब वह उचित और अविरोधी है। लेकिन भोग विलास हेतु धन की याचना करता है तब वह अनुचित और विरोधी है। अन्याय, हिंसक व्यापार आदि से धन प्राप्ति की इच्छा भी विरोधी कही जाती है। प्र.526 लोक विरुद्धच्चाओ से क्या तात्पर्य है ? उ. लोक विरुद्ध कार्यों का त्याग करना । किसी की निंदा करना, गुण सम्पन्न आत्माओं जैसे - समृद्ध आचार्यादि की निंदा करना, मंद बुद्धि वालों द्वारा कृत धार्मिक क्रिया पर हँसना, लोकपुज्य व्यक्ति यानि राजा, मंत्री,सेठ साहुकार और गुरूजनों का तिरस्कार करना, बहुजन विरोधियों का साथ देना उनसे सम्पर्क रखना, देश-ग्राम-कुल-प्रचलित आचार का उल्लंघन करना आदि लोक विरुद्ध कार्य है। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 139 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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