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________________ प्र.519 कौन से गुणों को नींव के गुण कहा जाता है और क्यों कहा जाता है ? उ. 1. धर्म श्रवण 2. सत्संग 3. कदाग्रह त्याग 4. पाप त्याग 5. लज्जा 6. निंदा श्रवण 7. निंदा प्रवृत्ति त्याग 8. इन्द्रिय गुलामी त्याग 9. आंतर शत्रु त्याग 10. सौम्यता 11. बुद्धि के आठ गुण 12. न्याय संपन्न वैभव । उपरोक्त बारह गुणों पर ही मार्गानुसारी का जीवन टिका रहता है इसलिए इन्हें नींव के गुण कहा जाता है। प्र.520 कौन से गुण उचित गुण कहलाते है और क्यों ? उ. निम्न गुण - 1. उचित व्यय 2. उचित वेश 3. उचित विवाह 4. उचित घर 5. उचित देश 6. उचित भोजन 7. अजीर्ण में भोजन त्याग 8. अदेश . काल चर्या त्याग 9. प्रसिद्ध देशाचार पालन 10. बालाबल विचार । इन 10 गुणों से जीव का किसी प्रकार से आध्यात्मिक विकास तो नही होता है, किन्तु प्रत्येक दृष्टि से जीव के विकास में इन औचित्य गुणों की आवश्यकता पडती ही है इसलिए ये उचित गुण कहलाते है। प्र.521 करणीय गुण किसे और कौनसे गुणों को कहते है ? उ. कुछ करने से ही जिन गुणों की प्राप्ति होती है, उन्हें करणीय गुण कहते है। 1. माता पिता का पूजन 2. पोष्य पोषण 3. अतिथि साधु सेवा 4. शिष्टाचार प्रशंसा 5. गुण पक्षपात 6. परोपकार 7. त्रिवर्ग अबाधा 8. ज्ञानवृद्ध चारित्र पात्र की सेवा। प्र.522 कौन से गुणों को शिखर के गुण कहते है और क्यों ? उ. निम्न गुणों को शिखर के गुण कहते है - 1. लोकप्रियता 2. दीर्घ दृष्टि 3. विशेषज्ञता 4. कृतज्ञता 5. दया । क्योंकि इन्हीं गुणों से व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान होती है। off to toto of fo of oft to fo of oto fo of of fo of ofo of of of of f f f f f of to offtttt fo of off of 138 दशम प्रणिधान त्रिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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