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________________ सिंहासन 6. भामण्डल 7. देव दुन्दुभि 8. छत्र त्रय । 1. अशोक वृक्ष - अति मनोहर एवं विशाल शालवृक्ष से सुभोभित परमात्मा की देह से बारह गुणा बड़ा ऐसा अशोक वृक्ष (आसोपालव वृक्ष) समवसरण के मध्य में देवता रचते है । जिसके नीचे भगवान विराजकर देशना फरमाते है। 2. सुरपुष्पवृष्टि - एक योजन प्रमाण समवसरण की भूमि में देव . अधोवृन्त एवं ऊपर मुखवाले, जलस्थल में उत्पन्न, सदा विकस्वर, वैक्रिय शक्ति से जन्य, पांच वर्ण के सचित्त पुष्पों की जानुप्रमाण वृष्टि करते है । परमात्मा के अतिशय से उन पुष्पों के जीवों को किसी प्रकार की पीडा (किलामना) नही होती है । 3. दिव्य ध्वनि - परमात्मा की वाणी को देवता मालकोश राग, वीणा, बंसी आदि से स्वर पूरते है। 4. चामर युगल - रत्न जडित स्वर्ण डंडी वाले चार जोड़ी श्वेत चामर समवसरण में देवता भगवान के दोनों ओर बींजते है । 5. स्वर्ण सिंहासन - परमात्मा के बैठने हेतु अत्यन्त चमकीली केश सटा से सुशोभित स्कन्धों से युक्त और स्पष्ट दिखाई देने वाली तीक्ष्ण दाढ़ाओं से सजीव लगने वाले सिंहालंकृत, अनमोल रत्न जडित सिंहासन की रचना देवता करते है । भामण्डल - भगवान के मुखमंडल के पीछे शरद् ऋतु के समान उग्र तेजस्वी भामंडल की रचना देवता करते है । उस भामंडल में परमात्मा का तेज संक्रमित होता है। परमात्मा का मुख इतना तेजस्वी होता है जिसे भामंडल के अभाव में हम देख नहीं सकते । ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 122 पंचम अवस्था त्रिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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