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7. देव दुन्दुभि - जिनकी तीव्र ध्वनि से तीनों भुवन गुंज उठते है ऐसी
देव दुन्दुभि परमात्मा के समवसरण के समय देवता बजाते है। वे ऐसा सूचन करते है कि हे भव्य प्राणियों ! तुम मोक्ष नगर के सार्थवाह के तुल्य इन परमात्मा की सेवा करो, इनकी शरण में जाओ ।
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छत्रत्रय समवसरण में देवता परमात्मा के मस्तक के उपर शरदचन्द्र समान उज्ज्वल तथा मोतियों की मालाओं से सुशोभित उपरा - उपरी क्रमशः तीन तीन छत्रों की रचना करते है ।
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परमात्मा समवसरण में पूर्वाभिमुख विराजते है और अन्य तीन दिशाओं ( उत्तर, पश्चिम, दक्षिण) में देवता भगवान के प्रभाव से प्रतिबिम्ब रचकर स्थापन करते है । चारों ओर परमात्मा के ऊपर तीन-तीन छत्र की रचना होने से बारह छत्र होते है । अन्य समय (विहार वेला) तीन छत्र ही होते है
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समवसरण के नही होने पर भी ये अष्ट प्रातिहार्य परमात्मा के केवलज्ञान से लेकर निर्वाण समय (शरीर छोडने से पूर्व ) तक सदा परमात्मा के साथ रहते है ।
ऋषभदेव परमात्मा से लेकर पार्श्वनाथ परमात्मा तक अशोक वृक्ष की ऊँचाई तीर्थंकर के शरीर से बारह गुणा व विस्तार एक योजन से अधिक होता है । किंतु परमात्मा महावीर के समवसरण में उसकी
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ऊँचाई 32 धनुष है।
प्र.468 आवश्यक चूर्णि में भगवान महावीर के समवसरण सम्बन्धी चर्चा के प्रसंग में अशोक वृक्ष की ऊँचाई उनके शरीर से 12 गुणी कही है “असोगवरपायवं जिणउच्चताओ बारसगुणं सक्को विउव्वइत्ति" यह
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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