SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाख (64000 × 250) कलशों से 64 इन्दों और करोडों देवी-देवता परमात्मा का अभिषेक करते है । प्र.460 जन्माभिषेक के कलशों का प्रमाण बताइये ? उ. प्रत्येक कलश 25 योजन ऊँचे, 12 योजन विस्तार वाले और 1 योजन नलिका वाले होते है । प्र.461 पदस्थ अवस्था किसे कहते है ? उ. परमात्मा की केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् की तीर्थंकर अवस्था के चितन द्वारा आत्मा को भावित करना, पदस्थ अवस्था कहलाती है। अर्थात् परमात्मा की केवल ज्ञानावस्था से लेकर निर्वाण पूर्व की समस्त अवस्था, पदस्थ अवस्था कहलाती है । प्र.462 परमात्मा की पदस्थ अवस्था का चिन्तन कैसे करें ? उ. परिकर के उपरी भाग में चित्रित कल्पवृक्ष आदि अष्ट प्रातिहार्यों को देखकर परमात्मा की पदस्थ अवस्था का चिंतन करें । प्र.463 प्रातिहार्य किसे कहते है ? उ. प्रवचन सारोद्धार की टीकानुसार - "प्रतिहारा इव प्रतिहारा सुरपतिनियुक्ता देवास्तेषां कर्माणि कृत्यानि प्रातिहार्याणि ।" अर्थात् इन्द्र द्वारा द्वार रक्ष की तरह नियुक्त देवता प्रतिहारी कहलाते है और उनके द्वारा करने योग्य कार्य प्रातिहार्य है । प्र.464 ' प्रतिहार' शब्द का शब्दार्थ किजिए ? उ. " प्रत्येकं हरति स्वामिपार्श्वमानयति" (प्रति + ह् + अण्) प्रत्येक को स्वामी के पास लाने वाला प्रतिहार द्वारपाल । प्रतिहार शब्द का दूसरा अर्थ द्वार, दरवाजा आदि भी है । 120 Jain Education International For Personal & Private Use Only पंचम अवस्था त्रिक www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy